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________________ ६२ प्रेरणार्थक प्रत्यय (१) णिजन्त (जिन्नन्त) शब्द संग्रह (सुगंधित पत्र-पुष्प वाले पौधे) कमल-पोम्म चमेली-जाई, मालई गुलाब-पाडलो जूही-जूही, जूहिआ चंपा-चंपा, चंपयो अडहुल-जासुमणो मौलसिरी-बउलो तिलक-तिलगो, तिलयो मरुआ-मरुअगो, मरुअओ दोना--दमणगो, दमणगं मरुवयो अगस्तिया-अगत्थियो सिन्दुरिया--सिन्दुरो केवडा-केअगो कूजा-कुज्जयो वासंती-णवमालिया तुलसी—तुलसी मोगरा, वेला-मल्लिआ। गेंदा-झंडु (सं) धातु संग्रह सिंच-सींचना, छिडकना सिणिज्झ-स्नेह करना सिंज-अस्फुट आवाज करना सिर—बनाना, निर्माण करना सिक्ख-सीखना, पढना सिलाह-प्रशंसा करना सिज्झ-सीझना, निष्पन्न होना सिलेस--आलिंगन करना सिणा-स्नान करना सिव्व-सीना, सांधना प्रेरणार्थक प्रत्यय जहां एक कर्ता को दूसरा कर्ता कार्य करने को प्रेरित करता हो वहां संस्कृत में णि प्रत्यय आता है। भिक्षु शब्दानुशासन में णि के स्थान पर बिन् प्रत्यय आता है । इसलिए णिजन्त को बिन्नन्त कहते हैं। नियम ६६३ (णेरदेदावावे ३१४६)णि के स्थान पर अत्, एत्, आव और अवे-ये चार आदेश होते हैं । नियम ६६४ (अदेल्लुक्यादेरत आः ३३१५३) णि को अत् या ऐत् आदेश होने पर या णि का लुक् होने पर धातु के आदेश अ को आ हो जाता है । अत्-हासइ । एत्-हासेइ । आव-हसावइ । आवे-हसावेइ । कारइ, कारेइ, करावइ, करावेइ । उवसामइ, उवसामेइ, उवसमावइ उवसमावेइ । नियम ६६५ (गुविरविर्वा ३१५०) उपधा में गुरु या दीर्घस्वर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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