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________________ ६१ धनुष - धणू मुद्गर - मोगरो कुल्हाडी —- कुहाडी, फरसू आरा - करकयो चक्र — चक्को अंकुश - अंकुसो चाबुक कसो छुरी-छुरिया ० म्यान – खग्गपिहाणयं हक्क - हांकना, खदेडना छीनना हर-हरण करना, हरिस- खुश होना हव—होना हो --होना खुद्द खुद्दअर पडु तरतम प्रत्यय शब्द संग्रह ( शस्त्र वर्ग २ ) पिस्तौल - गुलिअत्थं (सं) मशीनगन-गुलिआजंतं (सं) वाण- सरो गदा गया त्रिशूल - तिसूलं सरीता - संकुला पत्थर फेंकने का अस्त्र - गुंफणं वज्र- - वज्जो पटुअर, पडीयस Jain Education International तरतम प्रत्यय प्राकृत में एक की अपेक्षा से अच्छा के अर्थ में प्रत्यय तथा सबसे अच्छा के अर्थ में का प्रयोग संस्कृत के समान होता है । होते हैं । जैसे पिओ पुत्तो । पिआ धूया । पिअं पोत्ययं । शब्द अर (तर) अम (तम ) गुरु गरीयस पिअ पिअअर उच्च उच्चअर o तूणीर तूणी, तूणा धातु संग्रह हस - हीन होना, कम होना त्यागना हा हिंड-भ्रमण करना, जाना हिरि - लज्जित होना हील -अवज्ञा करना अर (तर) और ईयस अम ( तम) और इट्ठ ( इष्ठ) प्रत्ययों विशेष्य के अनुसार इसमें तीनों लिंग गरिट्ठ पिअअम उच्चअम खुद्दअम पडुअम, पडिट्ठ शब्द अर (तर) तिक्ख तिक्खअर जेट्ठ जेटुअर भूयस कणीअस बहु अप्प For Private & Personal Use Only अम (तम ) तिक्खतम जे अम भूयिट्ठ कणिट्ठ www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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