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________________ ८६ विभक्त्यर्थ प्रत्यय शब्द संग्रह (रोगी वर्ग) अंधा-अंधो काणा-काणो बहरा-बहिरो लूला (हस्तरहित) कुंटो बेहोशीवाला---मुच्छिर (वि) गूगो-मूयो । प्रलंब अंड वाला-पलंबंडो (सं) वामन-वडभो खाज का रोगी--कच्छुल्लो बुखारवाला--जरि (वि) लंगडा--पंगू (पुं) पित्त का रोगी-पित्तिओ दस्त का रोगी-अइसारिओ मोटे पेट वाला-तुंदिलो दाद का रोगी–ददुलो कोढी--कोढिओ वायु का रोगी-वाइओ कफ का रोगी-सिलिम्हिओ कूबडो-खुज्जो चित्तकबरा-सबलो खांसी का रोगी-कासिल्लो । धातु संग्रह लिह-चाटना लुढ--लुढकना लुअ-छेदना, काटना . लुभ-लोभ करना हुँच-बाल उखाडना, लुंचन करना लूड-लूटना लुंप-लोपकरना, विनाश करना लोअ-देखना लुक्क-छिपना - उज--सींचना, उत्सेचन करना , अस्, त्र और वा प्रत्यय . संस्कृत में पंचमी विभक्ति के अर्थ में तस् प्रत्यय होता है। प्राकृत में पंचमी विभक्ति के अर्थ में तो और दो प्रत्ययों का प्रयोग होता है। ० सप्तमी विभक्ति के अर्थ में संस्कृत में त्रस् प्रत्यय होता है प्राकृत में • त्र के स्थान पर हि, ह और त्थ प्रत्यय आदेश होता है। ० कालसूचक सप्तमी विभक्ति के अर्थ में संस्कृत के दा प्रत्यय के स्थान पर प्राकृत में सि, सिमं और इआ प्रत्यय विकल्प से होता है। . नियम ६४१ (त्तो दो तसो वा २॥१६०) तस् प्रत्यय के स्थान पर त्तो और दो प्रत्यय विकल्प से आदेश होते हैं। . सर्वतः (सव्वत्तो, सव्वदो, सव्वओ) सब प्रकार से । एकतः (एगत्तो, एगदो, एगओ) एक प्रकार से । अन्यतः (अन्नत्तो, अन्नदो, अन्नओ) अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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