________________
भाव
इमा-पीनिमा, पीनत्वं (पीणिमा) मोटापन । पुष्पत्वं (पुल्फिमा) पुष्पपना। तण-पीनत्वम् (पीणत्तणं) मोटापन । पुष्पत्वं (पुष्फत्तणं) पुष्पपना त-देवत्वम् (देवत्तं) देवपना । साधुत्वम् (साहुत्तं) साधुपना।
संस्कृत परक पीनता शब्द का प्राकृत में पीणया भी होता है । इसी प्रकार अन्य शब्दों के भी रूप बनते हैं। . प्रयोग वाक्य
तुमं मुहु-मुहु जरपीडिओ कहं जाओ ? अत्थ भगंदरस्स चिइच्छा वरा न भवइ । पमेहेण सरीरो सिढलो भवइ । केन कारणेण तुमं पडिस्साएण पौडिओ जाओ। रमेसस्स गुदगहं पासिऊण तस्स पिआ चितापुण्णो जाओ। मरुभूमीए वि कस्सइ अंडवड्ढणं भवइ । कस्स विद्दही विज्जइ ? दहि-भक्खणेण कासो वड्ढइ । केन कारणेण तस्स फोडो न भरइ । महुरवत्थुणा पित्तो उक्सामइ । तस्स उदरगंठी कहं चड्ढइ ? माडीवणो वि भयंकरो भवइ । कि कारणमत्थि, सेहो साहू जं किमवि खाअइ तस्स धमणं भवह ? गहणीए सरीरो सिढिलो होइ । हिक्का वि दोहकाला बलइ । मुस्तकिच्छे पाणि बहियं पाअव्वं । भूविंदो मुणी सइ जुगवं सत्त छिक्काओ करेइ। केन कारणेण कफो विवड्ढइ । वाउरोगिस्स अवत्था अदंसणीआ भवइ । ..... . धातु प्रयोग
सहम्मि वत्थुम्मि रयाई खिप्पं लसंति । मुक्खेण सद्धि विकायों नरं लहअइ । सो तुम्ह संबंधं लायइ । माआ पुत्तं लालइ । विरोही मिसेण सह लालप्पइ । सा अज्ज न लासिस्सइ । गुरुणा अज्ज तुम लाहिओ । मुणी पत्तीए खंडाइं लायइ । अहं किमविन लिच्छामि । सो परिसम्मि सइ गिहं लिपड़ । प्रत्यय प्रयोग
पीणिमा मह किचि वि न रोअइ। आयारेण साहुत्तं सोहइ । संजमदिट्ठीए देवत्ताओ मणुअस्स बहुमहत्तं अत्थि । पुप्फत्तणेण पायत्रो सोहइ । प्राकृत में अनुवाद करो
. मुझे इस वर्ष पांच बार बुखार आया। किस कर्म के उदय से भगंदर होता है ? प्रमेह में मूत्र साफ नहीं आता । जुखाम भी कभी-कभी लंबे समय तक चलती है । मलावरोध (कब्ज) से मनुष्य कष्ट पाता है। अंडकोशवृद्धि दक्षिण के लोगों में अधिक मिलती है । अस्थि के सूजन की चिकित्सा सरल नहीं है। खांसी से नींद कम आती है। चीनी की बीमारी वाले का व्रण जल्दी नहीं भरता है। पित्त का लक्षण क्या है ? उसकी पेट की गांठ प्रतिदिन बढ रही है। एक साधु के नासूर का रोग मैंने देखा था । वमन होने के बाद मन में प्रसन्नता होती है। इस वर्ष किसको दस्तों का रोग हुआ था? क्या हिचकी वायु से
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org