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भाव
शब्द संग्रह (रोग वर्ग २) बुखार-जरो
पेट की गांठ-उदरगंठि (पुं, स्त्री) भगंदर--भगंदरो
नासुर-नाडीवणो (सं) 'प्रमेह पहो
व मनवमण जुखाम-पडिस्सायो दस्तों का रोग-गहणी (सं) स्त्री कब्ज, मलमूत्रावरोधजन्यरोग हिचकी-हिक्का - -गुदगहो (सं) पथरी—मुत्तकिच्छं (सं)।
अंडकोशवृद्धि-अंडवड्ढणं अस्थि में भयंकर सौजन--विद्दहि (सं).
खाज-कंडू (स्त्री) छींकरोग-छिक्का (दे०) - खांसी रोग-कासो
कफरोग-कफो" व्रण-फोडो
- वायुरोग–वाउ (पं) पित्तरोग-- पित्तो, पित्तं ..
व्यक्ति--विअत्ति
पातु संग्रह लस- श्लेष करना, चमकना लालप्प-खूब बकना लहुअ-लघुकरना
लास-नाचना लाय-काटना, छेदना लाह-प्रशंसा करना लाल---स्नेहपूर्वक पालन करना लिच्छ-प्राप्त करने की इच्छा
लाय-लगाना, जोडना लिप-लेप करना, लीपना भाव
जिस गुण के होने से द्रव्य में शब्द का सन्निवेश (संबंध) होता है उस गुण को भाव कहते हैं । साधुता गुण के कारण ही साधु शब्द अपना अर्थ बोध देता है। संस्कृत में सब शब्दों से भाव में त्व और तल् प्रत्यय होता है। इनके अतिरिक्त कुछ शब्दों से इमन् और ट्यण आदि प्रत्यय भी होते हैं। प्राकृत में भाव अर्थ में इमा, त्तण और त प्रत्यय होते हैं।
नियम ६४० (त्वस्य डिमा-तणो वा २॥१५४) भावसूचक त्व प्रत्यय को डिमा (इमा) और तण प्रत्यय विकल्प से होता है। पक्ष में त्व को त प्रत्यय होता है।
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