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भव अर्थ
__ शब्द संग्रह (स्पर्श वर्ग) गरम-उसिण (वि) हल्का-लहुय (वि) ठंडा-सीय (वि)
भारी, बडा-गरुय (वि) कठोर-कक्कस (वि) कोमल-मउय (वि) रूखा-लुक्ख (वि)
चिकना-णिद्धं न भारी न हल्का-अगरुलहु (वि) शीतोष्ण, ठंडा तथा गरम-सीउण्हं
बर्फ-हिम
गूंद-णिज्जासो
धातु संग्रह रय-बनाना, निर्माण करना रिझरीझना, खुशी होना रव-बोलना
री-जाना, चलना रस-चिल्लाना, आवाज करना रुअ--रोना रा-शब्द करना,
रुंध--रोकना, अटकाना रा-चिपकना, श्लेष करना रुच (दे)-पीसना भव अर्थ
__ संस्कृत के तत्रभवं (उसमें होने वाला) अर्थ के लिए प्राकृत में इल्ल और उल्ल प्रत्यय होता है।
नियम ६३८ (डिल्ल-जुल्लो भवे २११६३) भव अर्थ में नाम से डिल्ल (इल्ल) और डुल्ल (उल्ल) प्रत्यय होते हैं।
गाम+इल्ल == गामिल्लं (ग्रामे भवं) ग्राम में होने वाला हेट्ठ+इल्ल--हेट्ठिल्लं (अधस्तनं) नीचे होने वाला घर--इल्ल-घरिल्लं (गहे भवं) घर में होने वाला अप्प+ उल्ल= अप्पुल्लं (आत्मनि भवं) आत्मा में होने वाला
नयर-उल्ल-नयाल्लं (नगरे भवं) नगर में होने वाला प्रयोग वाक्य
सो उसिणं दुद्धं पिवइ । गिम्हकाले सीयं जलं रोअइ । कक्कसा भासा न जंपणीआ । तुमं ववहारम्मि लुक्खो सि । कप्पासो लहुयो भवइ । सो कम्मणा गरुयो अस्थि । तस्स हिअयं मयं अस्थि । णिद्धम्मि वत्थुम्मि रयो खिप्पं लग्गइ। अहं सीउण्हेहिं सलिलेहिं हामि । आआसो अगरलहू अस्थि ।
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