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________________ द्वन्द्व समास २६७ देवा य देवीओ य = देवदेवीओ (२) समाहार--जिसमें पृथक-पृथक् शब्दों का महत्त्व न होकर केवल समूह का महत्त्व होता है उसे समाहारद्वन्द्व कहते हैं। इसमें एकवचन और नपुंसकलिंग होते हैं। घडो य संख य पडो य घडसंखपडं तवो य संजमो य एएसिं समाहारो तवसंजमं पुण्णं य पावं य -- पुण्णपावं णाणं य दंसणं य चरित्तं य -- णाणदंसणचरितं असणं य पाणं य असणपाणं एकशेष द्वंद्व जिसमें दो शब्दों या अनेक शब्दों में से एक शेष रहकर दोनों या सब का बोध कराए उसे एकशेषद्वन्द्व कहते हैं। जिणो य जिणो य जिणो य त्ति -- जिणा माआ अ पिआ य त्ति - पिअरा सासू य ससूरो अत्ति ससुरा प्रयोग वाक्य पाणिअहारी जुगवं दो घडाइं तलायत्तो आणेइ। किड्डाविया सिसुणो कीडावेइ । धीवरी मच्छा पयावेइ। नडी आपणम्मि' खेलं पदंसइ। धणपत्ती उरालचित्तेण धणं वितरइ । दुल्लसिआ गिहस्स सव्वाइं कज्जाइं करेइ । दासीपरंपरा अज्जत्ता न चलइ । गणई वि जम्मपत्तियं करेइ । अंबोच्ची मालमवि गुंफइ। अंतीहारी अंतेउरीए किवापत्तं भवइ । उवज्झायणी सिसू पढावेइ । डोंगिली दिवहम्मि एव तंबोलाई विक्कीणइ । समये समये गंधिआ वि हट्टे उवविसइ। धातु प्रयोग पट्टई किमट्ठपणच्चइ। सुसीला विमलेण सह पणयइ । आयरिएण भिक्खुणा रायणयरवासीणं (राजनगरवासी) सावगा पणामिआ । नायमंदिरे तेण तुमं पणामिओ। माली कहं उज्जाणं पणासइ ? सावगा भत्तिपुण्णेण गुरुं पणिवयंति । मुणी सुहो (शुभ) एगते पणिहाइ। थेरो सेहं पढि पणोल्लइ। प्राकृत में अनुवाद करो बच्चों को खेल कूद कराने वाली के मन में ममत्व नहीं है । नौकरानी सेठानी के कटु वचनों को सहन नहीं करती है । नटी का खेल देखने कल कौनकौन जाएंगे ? धीवर की स्त्री ने कभी भी आम नहीं खाया। पनीहारी आज हमारे घर में क्यों नहीं आई ? वस्तुओं की तरह स्त्री का भी विक्रय होता था, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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