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बहुग्रीहि समास
शब्द संग्रह (स्त्रीवर्ग ४) ऊंचे नाक वाली-तुंगणासिआ युवती-जुवई बडे पेट वाली--दीहोअरी पुत्रवती-पुत्तवई अच्छे केश वाली-सुएसी चतुरस्त्री-णिउणा शीघ्र प्रसववाली--अणु सूआ गृहपत्नी--गिहिणी मोटी स्त्री-पीवरी
परतंत्रस्त्री---आविउज्झा (दे०)
वार्ता-वत्ता वैक्रिय शरीर से संबंधित--विउविअ (वि) घटना-घडणा स्वतंत्र--सतंत (वि)
लब्धि-लद्धि (स्त्री)
धातु संग्रह पडिसखा-व्यवहार करना पडिहर--फिर से पूर्ण करना पडिसंखेव-समेटना
पडिहा--मालूम होना, लगना पडिसंचिक्ख चिंतन करना पडिहास-मालूम होना, लगना पडिसाह-उत्तर देना
पडिसुण-प्रतिज्ञा करना, स्वीकार पडिसेव-निषिद्ध वस्तु का
करना सेवन करना
पडिसाहर-निवृत्त करना बहुव्रीहि
बहुव्रीहि समास में पूर्वपद और उत्तरपद की प्रधानता नहीं होती है, तीसरे पद की प्रधानता होती है, इसलिए उसे अन्यपदप्रधान समास भी कहते हैं। बहुव्रीहिसमास करने के बाद वह समासित पद किसी शब्द का विशेषण ही बनता है, विशेष्य नहीं होता। विशेष्य के अनुसार उसमें लिंग
और वचन होते हैं । बहुव्रीहिसमास दो प्रकार का होता है--समानाधिकरण और व्यधिकरण । जिस विग्रह में दोनों पदों में समान अधिकरण (विभक्ति) होती है उसे समानाधिकरण कहते हैं। जहां दोनों पदों में भिन्न-भिन्न विभक्ति होती है उसे व्यधिकरण कहते हैं। विग्रह में ज (यत्) शब्द का प्रयोग किया जाता है, वह विशेष्य से संबंध रखता है। ज शब्द में द्वितीया से लेकर सप्तमी विभक्ति तक का प्रयोग किया जाता है। बहुव्रीहिसमास में जिन शब्दों में समास होता है, वे शब्द त (तत्) के द्वारा सूचित अर्थ के विशेषण बनते हैं ।
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