________________
कर्मधारय और द्विगु समास
२६१ उण्हं जलंसीउण्हं जलं । रत्तं य पीअं वत्थं रत्तपीअं वत्थं ।
(४) उपमान पूर्वपद-जिसमें पहला पद उपमान वाची हो। घणो इव सामो=घणसामो (घनश्यामः) । वज्ज इव देहो= वज्जदेहो (वज्रदेहः)
(५) उपमेय उत्तरपद--जिसमें उत्तरपद उपमेयवाची हो । पुरिसो सोहो इव-पुरिससीहो । मुहं चंदो इव=मुहचंदो।
(६) अवधारण बोधक-जिसका पहला पद किसी भी अर्थ में हो और वह दूसरे पद से जोडा जाए उसे अवधारण बोधक कहते हैं। विज्जा एव धणं विज्जाधणं । संजमो चिअ धणं संजमधणं । णाणं चेअ गंगा=णाणगंगा
द्विगु समास कर्मधारय का प्रथमपद यदि संख्या परक हो तो उसको द्विगु समास कहते हैं। द्विगुसमास प्रायः समुदाय बोधक होता है । णवण्हं तत्ताणं समाहारो =णवतत्तं । तिणि लोया तिलोयं । चउण्हं कसायाणं समूहो चउक्कसायं ।
नञ्तत्पुरुष अभाव या निषेधार्थक अ अथवा अण के साथ संज्ञा शब्दों के समास को नञ्तत्पुरुष समास कहते हैं। उत्तरपद में व्यंजन आदि वाला संज्ञा शब्द हो तो अ के साथ तथा स्वर आदि वाला हो तो अण के साथ समास होता है। न हिंसा (अहिंसा)
न आयारो (अणायारो) न सच्चं (असच्चं)
न इलैं (अणिट्ठ) न धम्मो (अधम्मो)
न इड्ढी (अणिड्ढी) प्रयोग वाक्य
चेलणा सेणिअरण्णो महिसी आसि । किनरिं पासिऊण जो विचलिरो न भवइ सो एव बंभयारी । सुंदरि णिभालिऊणं मणो चंचलो भवइ । रक्खसी जणा भयभेरवा करेइ । पणसुंदरी णयरवासिणो पत्ती भवइ। कुलडा परपुरिसाओ पेम्मं करेइ । धम्मेसस्स पत्ती कामुआ नत्थि । रमेसस्स एगा अहिविण्णा गिहस्स पासे चेअ वसइ । चवलाए चवलत्तं थीणं दोसो होइ। अवियाउरीए पुत्तस्स अहिलासा बहुभवइ । धातु प्रयोग
पडिसवमाणो सोहणो सहलो (सफल) न भवइ । सो कल्लं जावज्जीवं असच्चजंपणस्स पडिसविस्सइ । रज्जाहिगारी कोडागारे संगहियस्स अन्नं किमळं पडिसाडइ ? मोहणो रमेसस्स कोवं पडिसंजलइ । तुडियकायो (काच) न पडिसंधइ । अहं कल्लं पावाओ पडिसमिस्सामि । सावगो सामाइयम्मि सावज्जजोगाओ अप्पाणं पडिसंहरइ । सो सक्खं वेयणं पडिसंवेयइ । मुणी संसारस्स सरूवं पडिसंविक्खइ । सरलो णियतुडिं पडिसंधाइ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org