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समास
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अव्यय
हो जाता है । अन्तर्वेदिः (अन्तावेई) । सप्तविंशतिः (सत्तावीसा)।
कहीं पर विकल्प से होते हैं
भुजयंत्रम् (भुआयतं, भुअयंत) पतिगृहम् (पईहरं, पइहरं) वेणुवनं (वेलूवणं) वारिमतिः (वारीमई, वारिमई) ।
दीर्घ को ह्रस्व विकल्प से
नदी स्रोतस् (नइसोत्तं, नईसोत्तं) गौरीगृहम् (गोरिहरं, गोरीहरं) यमुनातटम् (जंउणयडं, जंउणायडं), बधूमुखम् (वहुमुहं, वहूमुहं)। अव्ययीभाव समास
समास में दो पद होते हैं--पूर्वपद और उत्तरपद । पूर्व (पहले) होने वाले पद को पूर्वपद और आगे होने वाले पद को उत्तरपद कहते हैं। उत्तरपद के कुछ अर्थों के लिए अव्यय प्रयोग में आते हैं। अव्ययीभाव समास में उन अव्ययों का प्राग् निपात हो जाता है यानि वह अव्यय उत्तरपद से पूर्वपद में आ जाता है। उत्तरपद का शब्द नपुंसकलिंगी हो जाता है। दीर्घ शब्द हो तो वह ह्रस्व हो जाता है। कुछेक अर्थों के लिए निम्नलिखित अव्यय निश्चित हैं। अर्थ
अर्थ
अव्यय समीप अर्थ में उव सप्तमी विभक्ति अहि
के अर्थ में योग्य अर्थ में
अनतिक्रमण जहा
के अर्थ में विनाश अर्थ में
वस्तु के अभाव में निर नि-+
अगला वर्ण द्वित्व) पश्चाद् अर्थ में
वीप्सा अर्थ में साथ के अर्थ में
समृद्धि अर्थ में एकसाथ अर्थ में उदाहरण गुरुणो समीपं-उवगुरु
आयरियस्स पच्छा--अणुआयरियं अप्पंसि-अज्झप्पं
पुरं पुरं पइ-पइपुरं रूवस्स जोग्गं-अणुरूवं
चक्केण सह-सचक्कं सत्ति अणइक्कमिऊण-जहासत्ति भदाणं समिद्धी-सुभई हिमस्स अच्चओ-अइहिम
चक्केण जुगवं-सचक्कं बलस्स अहाओ-णिब्बलं प्रयोग वाक्य
पत्तेयदेसस्स अण्णदेसम्मि चरा भवंति । कितबो टेंटाए जूअं खेलइ ।
पइ
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