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________________ २८४ प्राकृत वाक्यरचना बोध खिंगस्स मणम्मि (मणंसि) संती नत्थि । पतारगो वायेण लोएहिन्तो धणं गिण्हइ । जणसमूहे पाओ (प्रायः) गंठिछेओ मिलइ । चिधपुरिसो थीणं वत्थाणि परिहाइ। परस्स किमवि वत्थु आणं विणा जो गिण्हइ सो चोरो भवइ । दस्सू दिणे चेअ लुंटइ। रमेसो अणडं मारिउ अहिलसइ। अत्थ सुंडिअस्स वावारं न चलिस्सइ । केवट्टो पपुलेण मच्छा गिण्हइ भक्खइ य । तुमं सोणिसं णासिऊण किं उवदिससि ? लुद्धो पुच्छइ जं किं इओ हरिणो गओ ? . धातु प्रयोग तुज्झ कज्जम्मि को वि न पडिबंधइ। किं तुम संकप्पेण पुव्वगहिअं संकप्पं पडिबंधसि ? करकंडू सयं पडिबुज्झइ। मज्झ पत्तं कहं पडिभंजिअं ? गणबाहिसाहू अण्णं साहुं गणाओ पडिभंसइ। सीयकाले पयजत्ताए को पडिभमइ ? झाणम्मि तं भविस्सं पडिभास इ । सेट्टिणा भिच्चं पडिमुंचिउ बहु पयत्तईअ । अहं पडियाइक्खामि तिणा सह विवादं न करिहिमि । सो रायाणं पडिमतेइ । अव्ययप्रयोग वाक्य ___ अहं उवगुरुं उवविसामि । अणुआयरियं संघस्स विआसो को करिस्सइ ? अज्झप्पं रमणं साहुस्स सेयं । अणुरूवं सम्माणं मिलइ । पइमुणिं सो सुहपुच्छ पुच्छइ । णिद्धणाण साउज्ज (सहयोग) को करिहिइ ? णिब्बलाणं को मित्तं ? जहासत्ति तवो करणीओ। जगा सुजेणं असूअंति । हिमवम्मि पव्वये अइहिमं कया जाअं? सो सचक्कं सगडिआ कीणइ । प्राकृत में अनुवाद करो जासूस ने क्या नई सूचना दी है ? राज्य कर्मचारी ने जुआरी को जुवाखाने में जुआ खेलते हुए पकडा । ठग की किसी के साथ मित्रता नहीं है। . पाकिटमार भी प्रशिक्षण लेता है। भारत का सुप्रसिद्ध जादूगर आजकल विदेश गया हुआ है। समाज ही व्यक्ति को डाकू बनाता है। हिंजडों का भी एक समाज होता है। चोर किसके मकान में घुसा है ? जार पुरुष की दुर्गति होती है। सुरा विक्रेता सुरा का प्रचार करता है। मच्छीमार रात में भी समुद्र में जाकर मछलियों को पकडते हैं। धातु का प्रयोग करो साधु बनने में उसके लिए कोई अवरोध नहीं है। संकल्प को दोहरा कर वह संकल्प को संकल्प से वेष्टित करता है। कुछ महापुरुष स्वयं प्रतिबोध पाते हैं। उनकी मित्रता कैसे टूटी ? धर्मपथ से किसी को भ्रष्ट मत करो। वह प्रतिवर्ष कई तीर्थस्थानों का पर्यटन करता है। उसकी आत्मा निर्मल है इसीलिए उसे भविष्य की घटना प्रतिभासित होती है। उसने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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