SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ समास शब्द संग्रह (वृत्ति जीवी वर्ग ४) जासूस-चरो जादूगर-इंदजालिओ जुआरी-कितवो चोर-तक्करो, चोरो रंडीबाज-खिंगो डाकू-दस्सू ठग - वंचगो, पतारगो जारपुरुष-अणडो (दे०) पाकिटमार--गंडभेओ, गंठिछेओ सुराविक्रेता---सुंडिओ हिंजडा-चिंधपुरिसो मच्छीमार-केवट्टो, धीवरो कसाई-सोणिओ शिकारी-लुद्धो मछली-मच्छो व्यापार-वावारं जूआखाना-टेंटा (दे०) जुआ-जूअं मछली पकडने का जाल-पवंपुलो शान्ति-संति (स्त्री) धातु संग्रह पडिबंध-रोकना, अटकाना पडिभम-घूमना, पर्यटन करना पडिबंध-वेष्टन करना पडिभास-मालूम होना पडिबुज्झ-बोधपाना पडिमंत-उत्तर देना पडिभंज-भांगना, टूटना पडिमुंच-छोडना पडिभंस-भ्रष्ट करना पडियाइक्ख-त्याग करना समास समास और विग्रह दो शब्द हैं। परस्पर अपेक्षा रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों के संयोग को समास कहते हैं। समासित पदों को अलग करने को विग्रह कहते हैं। प्राकृत में समास करने के लिए कोई सूत्र या विधान नहीं है । साहित्य में समासित पद मिलते हैं। उन्हें समझने के लिए संस्कृत का आधार लेना होता है । संस्कृत में जो समास का विधान है वही प्राकृत में लागू होता है। समास के प्रमुख रूप से चार भेद हैं-अव्ययीभाव, तत्पुरुष, बहुव्रीहि और द्वन्द्व । कर्मधारय और द्विगु तत्पुरुष के अन्तर्गत हैं। कोई इन्हें स्वतंत्र मानकर समास के ६ भेद मानते हैं। नियम ६३३ (दीर्घ-हस्वी मिथो वृत्तौ ११४) समास में प्रथम शब्द का अन्तिम स्वर ह्रस्व हो तो दीर्घ हो जाता है और दीर्घ हो तो ह्रस्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy