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प्राकृत वाक्यरचना बोध
(हिआ) दौहित्री । गवयः (गऊआ) गाय ।
नियम ६२० (छाया-हरिद्रयोः ३॥३४) छाया और हरिद्रा शब्दों से स्त्रीलिंग में ङी (ई) प्रत्यय विकल्प से होता है। छाया (छाया, छाही) छाया। हरिद्रा (हलिद्दी, हलिद्दा) हल्दी ।
__नियम ६२१ (अजाते पुंसः ३१३२) अजातिवाची पुंलिंग शब्दों से स्त्रीलिंग में ङी प्रत्यय विकल्प से होता है। नीलः (नीली, नीला) नीली। काल: (काली, काला) काली। हसमान: (हसमाणी, हसमाणा) हंसती हुई । शूर्पणखी (सुप्पणही, सुप्पणहा)। अनया (इमीए, इमाए) एतयो (इईए, एआए) अजातेरितिकिम् ? जाति अर्थ में जातिवाची अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग में ई प्रत्यय जोडा जाता है । हरिणी, सिंही, करिणी इत्यादि । कहीं आ प्रत्यय भी जोडते हैं-एलया, अया।
नियम ६२२ (कि यत् तदोस्यमामि ३१३३) किं, यद्, तद् - इन तीन शब्दों से सि, अम् और आम् प्रत्ययों को छोडकर शेष स्यादि प्रत्ययों में स्त्रीलिंग में ङी (ई) प्रत्यय विकल्प से होता है। कीओ, काओ। कीए, काए। कीसु, कासु । जीओ, जाओ। जीए, जाए। जीसु, जासु । तीओ, ताओ । तीए, ताए । तीसु, तासु ।।
(नियम २६१ रो रा १११६ से) स्त्रीलिंग मेंअन्त्य र को रा आदेश होता है । गिर् (गिरा) वाणी । पुर् (पुरा) प्राचीन । धुर् (धुरा) धुरी।
नियम ६२३ (बाहोरात् ११३६) स्त्रीलिंग में बाहु शब्द के अंतिम उ को आ आदेश होता है । बाहा (बाहुः) भुजा।।
नियम ६२४ (प्रत्यये की न वा ३।३१) अण् आदि प्रत्ययों को संस्कृत में स्त्रीलिंग में डी (ईप्) प्रत्यय कहा गया है। प्राकृत में उनसे डी प्रत्यय विकल्प से होता है । पक्ष में आप् (आ) प्रत्यय भी होता है। साहणी, साहणा । कुरुचरी, कुरुचरा। प्रयोग वाक्य
चिइच्छओ गुणसायरो कि तुज्झ चिइच्छं करेइ ? वेज्जो सामसुंदरो अस्स गामस्स पमुहो वेज्जो अस्थि । चित्तयारो पासणाहस्स चित्तं चित्तेइ। सिप्पी णियसिप्पं जणा दंसेइ । जंतिएण अज्ज अवगासो कहं गहिओ? जोइसिओ गहाणं पभावेण जणाणं भग्गं कहेइ। कांबलिअस्स पासे केत्तिलाणि कंबलाणि संति ? णिण्णेजओ नीरं विणा वत्थाई धावइ। पडिबियारेण पासणाहस्स पडिमा भव्वा कया। गायओ सुमेरो मंदसरेण महुरं गाअइ। वायगो वि गायएण सह अत्थ आगमिहिइ । विआहे वरस्स भाआ चे णच्चओ भवेज्ज तं न सोहणं । वरुडो पइदिणं कज्जं कहं न करेइ ? वणिओ वावारम्मि पडू भवइ । पोत्थारो अत्थ कया आगमिस्सइ? पाचओ बहु सम्म पयइ (पकाता
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