________________
७१
भविष्यत्कालिक प्रत्यय
पीठ-पिट्ठ " पसली — पासो
कलेजा - हिययं
नाभि - नाही
नितंब नियंबो, ढेल्लिका लिंग -- सिन्हो, सिहं
शब्द संग्रह (शरीर के अंग- उपांग ४)
कमर -- कडी
जांघ - जंघा, टंका
Jain Education International
(२)
सोच्छं ( श्रोष्यामि) रोच्छं (रोदिष्यामि) दच्छं ( द्रक्ष्यामि) वोच्छं ( वक्ष्यामि) भेच्छं (भेत्स्यामि )
घुटना - जाणु (न), जण्हुआ टांग - टंगो
पैर चरणो, पाओ ऐडी -पहिया
धातु संग्रह
पच्चुत्तर - नीचे आना पच्चुवगच्छ— सामने जाना
पच्चुवेक्ख – निरीक्षण करना
पच्चो गिल - स्वाद लेना
पच्चीणिवय - उछलकर नीचे गिरना भविष्यत्काल
( आ कृगो भूत-भविष्यतोश्च ४१२१४ ) नियम ७० से कृ धातु के अंतिम वर्ण को आ आदेश होता है, भूतकाल, भविष्यत्काल, क्त्वा, तुम्, और तव्य प्रत्यय परे हो तो । काहिइ ( करिष्यति, कर्ता वा )
नियम ६०६ ( कृ दो हं ३ | १७० ) करोति और ददाति धातु से परे भविष्यत्काल के प्रत्यय के स्थान पर 'हं' आदेश विकल्प से होता है । काहं, काहिमि ( करिष्यामि) दाहं, दाहिमि ( दास्यामि )
पच्चीरुह-पीछे उतरना पच्चीसक्क पीछे हटना पच्छ - प्रार्थना करना
नियम ६१० (भु गमि रुदि विदि दृशि मुचि वचि छिदि भिदि भुजां सोच्छं गच्छं रोच्छं बेच्छं दच्छं मोच्छं वोच्छं छेच्छं मेच्छं भोच्छं ३ | १७१) श्रु आदि १० धातुओं के भविष्यत् अर्थ में होने वाला मि प्रत्यय के स्थान पर सोच्छं आदि रूप निपात हैं ।
पच्छाअ ढकना पजप -- बोलना
गच्छं ( गमिष्यामि) वेच्छं (वेदिस्यामि )
मोच्छं (मोक्ष्यामि) छेच्छ (छेत्स्यामि) भोच्छं (भोक्ष्ये)
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org