SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आज्ञाथक प्रत्यय २५५ को स्थिर रखता है ? व्यायाम से आंख की ज्योति बढ़ती है। देखने की शक्ति आंख की पुतली में है। अपने कान में स्वयं स्पंदन करना कठिन है। नासा के अग्रभाग पर ध्यान का अभ्यास करो। दादी और मूंछ होना पुरुषत्व का लक्षण है। बहादूर सिंह मूंछ पर नींबू रख सकता है। धातु का प्रयोग करो __ जो पाप करता है वही उसका फल भोगता है। पक्षी सबेरे भोजन की खोज में पूर्व दिशा में चला गया। वह धलि को बाहर फेंकता है। तुम घोडे को किसलिए सज्जित करते हो? जो चढने का अभ्यास करता है वही गिरता है। सीता अपने घर से गंदे (मलिण) पानी को बाहर फेंकती है। तुम्हारे व्यवहार से मैं क्षुब्ध होता हूं। गर्म दूध के वर्तन को तत्काल ढको। वस्त्र को बार-बार मत झाडो । किसी की आस्था को हिला देना अच्छा कार्य नहीं है। आज्ञार्थक प्रत्ययों का प्रयोग करो तुम गांव के बाहर मत जाओ। हम लोग स्वाध्याय करें। चतुर्मास में सभी भाई बहन यथाशक्ति तप करे। तुम व्याख्यान दो, लोग आएंगे। तुम लाग घर जाओ, किसी की प्रतीक्षा मत करो। वे सब नदी में क्यों उतरे ? सबेरे जल्दी उठो और जल्दी सोओ। सब लोग अपना-अपना काम करो। तुम व्यर्थ ही उसकी चिंता मत करो। तुम पढ़ने में ध्यान दो। किसी को शिक्षा मत दो। दिन में शरीर का श्रम भी करो। दूसरों की बात मत करो। प्रतिदिन नमस्कार महामन्त्र का जाप अवश्य करो। बुरे व्यक्तियों की संगत मत करो। - प्रश्न १. आज्ञार्थक प्रथम और उत्तम पुरुष के एकवचन और बहुवचन के प्रत्ययों को क्या आदेश होता है ? २. आज्ञार्थक मध्यमपुरुष के एकवचन को सु प्रत्यय को क्या-क्या आदेश होता है ? ३. हस धातु के आज्ञार्थक प्रत्ययों के रूप लिखो। ४. सिर, खोपडी, कपाल, केश, भौं, भांपण, आंख, आंख की पुतली, कान, नाक और दाढीमूंछ के लिए प्राकृत शब्द बताओ। ५. पकुव्व, पक्कम, पक्किर, पक्खर, पक्खल, पक्खिव, पक्खुब्भ, पक्खोड, और पक्खोभ धातुओं के अर्थ बताओ और वाक्य में प्रयोग करो। ६. हन्यवाहो, अभिणिवेसो, इस्सा, अणहो, विहडणं, फरुससाला, घंघसाला, उवट्ठाणसाला शब्दों को वाक्य में प्रयोग करो तथा हिन्दी में अर्थ बताओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy