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________________ आज्ञार्थक प्रत्यय शब्द संग्रह (शरीर के अंग उपांग १) सिर--मत्थओ, सिरं केस--केसो, बालो, कयो मस्तकहीन शरीर, धड़-कमंधो कपाल-कवाली, भालो, कप्परो खोपडी--पणिआ भांपण-झंपणी, पम्हाई भौं-भुमया, भमुहा आंख की पुतली-अक्खरा आंख--णयणं, नेत्तं, चक्खु नाक----णासिआ, णासा कान-कण्णो, सोत्तं, सवणो मूंछ-आसरोमो दाढी-दाढिआ दाढी मूंछ-समस्सू कचरा–कयवरो व्यायाम-वायामो पानी से गीला-उदओल्लं धातु संग्रह पकूष्य-करना पक्खिव-फेंक देना, त्यागना पक्कम-चला जाना, प्रयत्न होना पक्खोड (प्र+छादय)-ढकना, आच्छादन पक्किर-फेंकना करना पक्खर-अश्व को कवच से . पक्खुब्भ-क्षोभ पाना, बढना, सज्जित करना, सन्नद्ध करना वृद्ध होना पक्खल-पडना, गिरना पक्खोभ ----क्षोभ उत्पन्न कर हिला पक्खोड (प्र+स्फोटय)-बार-बार देना झाडना आज्ञार्थक-. ____ इसका प्रयोग किसी को आशीर्वाद देने, विधि और सम्भावना अर्थ में होता है। जानने योग्य ० प्रत्यय लगाने से पूर्व अ विकरणवाली (हसान्त) धातु के अन्त्य अ को ___ए विकल्प से होता है । हसउ, हसेउ । • प्रथम पुरुष के एकवचन उ अथवा तु प्रत्यय लगाने से पूर्व अविकरण वाली धातु के अन्त्य अ का आ भी उपलब्ध होता है। सुणाउ, सुणउ, सुणेउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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