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प्राकृत वाक्यरचना बोध
६. प्राकृत में धातुओं का एक ही गण होता है । संस्कृत की तरह दस गण नहीं होते हैं । अन्य गणों की धातुएं भ्वादि गण की तरह ही चलती हैं। गणों के रूपों से सीधा प्राकृत करने से कहीं-कही भी हैं । जैसे - शृणोति - सुणोइ ।
पर रूप मिलते
वर्तमान काल के धातु के प्रत्यय
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प्रथमपुरुष
मध्यमपुरुष
उत्तमपुरुष
एकवचन
इ, ए
सि, से
मि,
इत्था, ह
मो, मु, म
उत्तमपुरुष के ए प्रत्यय का प्रयोग बहुत कम मिलता है, केवल आर्ष प्राकृत में होता है । प्रत्ययों से होने वाले धातु के रूप नीचे नियमों में स्पष्ट हैं इसलिए अलग से नहीं दिए जा रहे हैं ।
नियम ५७६ ( व्यञ्जनाददन्ते ४।२३६) व्यञ्जनान्त धातु के अंत में अकार का आगम होता है । वसइ, पढाइ, भमइ ।
नियम ५८० (स्वरादनतो वा ४।२४० ) अकारान्त धातु को छोड शेष स्वरान्त धातुओं के अंत में अकार का आगम विकल्प से होता है । पाइ, पाअइ । होइ, होअइ ।
बहुवचन न्ति, न्ते. इरे
ए
नियम ५८१ (त्यादीनामाद्यत्रयस्याद्यस्येचेची ३।१३६ ) परस्मैपद और आत्मनेपद के त्यादि विभक्तियों के प्रथमपुरुष के एकवचन ( तिप्, ते) प्रत्ययों को इच् (इ) और एच् (ए) आदेश होते हैं। हसइ, हसए ( हसति ) वह हसता है ।
नियम ५५२ ( बहुष्वाद्यस्य न्ति न्ते इरे ३ । १४२ ) प्रथमपुरुष के बहुवचन (अन्ति, अन्ते) प्रत्ययों को न्ति, न्ते, इरे आदेश होते हैं । हसंति, हसंते, हसिरे ( हसत:, हसंति ) वे दोनों या वे हंसते हैं ।
नियम ५८३ ( द्वितीयस्य सि से ३ | १४० ) मध्यमपुरुष के एकवचन ( सिप, से) प्रत्ययों को सि ओर से आदेश होते हैं । हससि, हससे ( हससि ) तू हंसता है ।
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नियम ५८४ ( अत एवंच से ३ | १४५ ) त्यादि प्रत्ययों के प्रथमपुरुष के एकवचन में ए और से प्रत्यय कहा है वह अकारान्त धातुओं से ही होता है, अन्य स्वरान्त धातुओं से नहीं । हसए, इससे । करए, करसे ।
नियम ५८५ ( मध्यम स्येत्था हचौ ३ | १४३ ) मध्यमपुरुष के बहुवचन (थ, ध्वे ) प्रत्ययों को इत्था और हच् (ह) आदेश होते हैं । हसित्था, हसह ( हसथ:, हसथ ) तुम दोनों या तुम हंसते हो ।
नियम ५८६ ( तृतीयस्य मिः ३।१४१ ) उत्तमपुरुष के एकवचन
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