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-पडवा
तंबूकुशल – कुसलो युद्ध—- जुज्झं
वर्तमानकालिक प्रत्यय
जीर्ण-जुन्नं, जुण्णं फोटुपडिच्छाया
नास्तिक - णत्थिओ (वि)
धर---धारण करना
धरिस - प्रगल्भता, ढीठाइ करना
धीरव सान्त्वना देना
धस - धसना, नीचे जाना
धा--धारण करना
धा — ध्यान करना, चिंतन करना
धातु रूप
शब्द संग्रह लक्षण - -लक्खणं
विघटन - विहडणं
खंडन — विसारणं
पवित्र, निर्दोष -- अणहो पाप - अणो
पडोसी - पाडोसिओ
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धातु संग्रह
धंस - नष्ट होना
धिप्प — चमकना
घुण - कंपाना
ध्रुव-धोना धा- -दौडना
१. शब्दों की तरह धातु के रूपों में भी द्विवचन नहीं होता ।
२. प्राकृत में आत्मनेपद और परस्मैपद का भेद नहीं होता । आत्मनेपद और परस्मैपद के प्रत्यय प्राकृत में प्रत्येक धातु के साथ जुडते हैं ।
३. भाव कर्म में भी आत्मनेपद नहीं होता है ।
४. प्राकृत में व्यंजनान्त धातुएं नहीं होती हैं । संस्कृत की व्यंजनान्त धातु में 'अ' विकरण जोडकर उसे अकारान्त बनाया जाता है । हस् + अ = हस । भण्+अ=भण | लिहू + अ = लिह ।
५. अंकारान्त को छोड शेष स्वरान्त धातुओं में अ विकरण विकल्प से जुडता है । होइ, होअइ । ठाइ, ठाअइ ।
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६. प्राकृत में धातु द्वित्व नहीं होती । जैसे संस्कृत में णबादि, सन्नन्त, यङन्त और यङ्लुगन्त आदि में होती है ।
७. प्राकृत में १० लकार नहीं होते ।
८. धातु के उपसर्ग जुडने से वह धातु का अंग बन जाता है । जैसे -- -- इक्ख पेक्ख । उव + इक्ख
उवेक्ख ।
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