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शब्दरूप (१०)
२४१ भ्यस् और सुप् परे होने पर दीर्घ विकल्प से होता है। चऊहि, चउहि । चऊओ, चउओ । चऊसु, चउसु ।।
नियम ५७२ (संख्याया आमो ह हं ३३१२३) संख्या शब्दों से परे आम् को ण्ह तथा ण्हं आदेश होते हैं। दोण्ह, दोण्हं । तिण्ह, तिण्हं । चउण्ह, चउण्हं । इसी प्रकार पंच, छ, सत्त, अट्ट, णव और दस शब्दों के रूप बनते हैं।
नियम ५७३ (शेषेदन्तवत् ३३१२४) शब्द सिद्धि के लिए ऊपर नियम बताए गए हैं। आकार आदि शब्दों के लिए जो नियम नहीं बताए गए हैं उनके लिए आकार आदि सारे शब्द अदन्तवत् हो जाते हैं यानि अकारान्त शब्द के नियम ही उन शब्दों में लगते हैं। जैसे (जस् शसो लुक् ३१४) यह नियम अकारान्त शब्द के लिए कार्य करता है। अदन्तवत् होने के कारण आकार आदि शब्दों में भी यह नियम कार्य करेगा। माला, गिरी, गुरू, सही, वहू रेहंति पेच्छ वा । इसी प्रकार अन्य स्यादि प्रत्ययों के लिए है।
• आकारादि शब्दों के लिए अवन्तवत् प्राप्त नियमों में निषेध
नियम ५७४ (न दी? णो ३३१२५) जस्, शस् और ङि प्रत्यय को आदेश णो प्रत्यय परे हो तो इदन्त और उदन्त शब्द दीर्घ नहीं होता है । अग्गिणो, वाउणो।
नियम ५७५ (से लक ३३१२६) आकारान्त आदि शब्द अदन्तवत् होने पर प्राप्त ङसि का लुक नहीं होता है। मालत्तो, मालाओ, मालाउ, मालाहिंतो एवं अग्गीओ, वाऊओ इत्यादि ।
नियम ५७६ (भ्यसश्च हिः ३३१२७) आकारान्त आदि शब्द अदन्तवत् होने पर प्राप्त भ्यस् और ङस् को हि नहीं होता है। मालाहितो, मालासुंतो। एवं अग्गीहितो इत्यादि ।
नियम ५७७ ( ३३१२८) आकारान्त आदि शब्द अदन्तवत् होने पर प्राप्त ङि को डे नहीं होता है । अग्गिम्मि, वाउम्मि ।
नियम ५७८ (एत् ३३१२६) आकारान्त आदि शब्द अदन्तवत् होने पर टा, शस्, भिस् और सुप् प्रत्यय परे होने पर एकार नहीं होता है। प्रयोग वाक्य
'समुदृस्स उल्लोला कत्थ गमिस्संति ? अभिणिवेसेण सच्चं दूरं गच्छइ । कइअवजुत्तववहारो केसिमवि पिओ न लग्गइ। कक्कसवयणं परस्स हिअयं भंजइ। सावगाणं तिण्णि मणोरहा पसिद्धा संति । उज्जमेण पक्खिणो वि णियउअरं भरंति। पेक्खाझाणेण सहावो परियट्टइ। भत्तीए भगवंतो वि पसीयइ। थीणं लावण्णं आभूसणं विव भाइ। हव्ववाहो सब्वाणि वत्थूणि भस्सीकुणइ ।
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