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प्राकृत वाक्यरचना बोध
की तरह चलता है । पिआ और पिअर आदि रूपों के स्थान पर पिया और पियर रूप भी उपलब्ध होता है ।
भाउ, भायर ( भ्रातृ) भाई
जामाउ, जामायर ( जामातृ) जमाई दाउ, दायर ( दातृ) दाता
कत्तु, कत्तार ( कर्तृ) कर्त्ता
भत्तु, भत्तार ( भर्तृ) भरण पोषण करने वाला ।
इस प्रकार पुंलिंग ऋकारान्त शब्द के रूप पितृ की तरह चलते हैं ।
नियम ४८० ( ऋतामुदस्यमौसु वा ३।४४ ) सि, अम्, औ को छोड़कर स्यादि प्रत्यय परे हों तो ऋकारान्त शब्दों को विकल्प से उकार हो जाता है । जस्— भत्तू, भत्तुणो, भत्तउ, भत्तओ । टा - भत्तुणा । नियम ४८१ ( आरः स्यादौ ३।४५) सि आदि परे रहने पर ऋकार को आर आदेश होता है । भत्तारो, भत्तारा, भत्तारं भत्तारे, भत्तारेण । नियम ४८२ ( नान्यर: ३।४७ ) संज्ञावाची ऋदन्त शब्दों के ऋ कोस आदि परे रहने पर अर आदेश होता है । पिअरा, पिअरं, पिअरे, पिअरेण, पिअरेहिं । भायरा, भायरं, भायरे, भायरेण, भायरेहिं ।
नियम ४८३ ( आ सौ न वा ३।४८ ) ऋदन्त शब्द को सि परे रहने पर आ विकल्प से होता है । पिआ, जामाया, भाया ।
नियम ४८४ ( ऋतोद् वा ३।३६ ) संबोधन में सि परे रहने पर ऋकारान्त शब्द के अंतिम स्वर को अ विकल्प से होता है । हे पिअ । हे भाय |
नियम ४८५ ( नान्यरं वा ३।४० ) संज्ञावाचक ऋकारान्त शब्द से परे संबोधन का सि परे हो तो ऋकार को अर आदेश विकल्प से होता है । हे पिअरं, हे पिअ ( हे पितः ) । जहां संज्ञा न हो वहां हे कत्तार ( हे कर्त: ) । प्रयोग वाक्य
सहस सिरे केसो भवइ । वग्घो धुत्तो होइ सो रुक्खम्मि तिरोधाऊणं पहारइ | चित्तस्स सरीरो चित्तो भवइ । भल्लू पायवम्मि आरोहइ । राया हत्थिसि आरोहिंसु । सुरेसस्स गिहे अज्जावि आसो अस्थि । महिसो बहुभारं वहइ । जणा खग्गिस्स चम्मस्स फलगं ( ढाल ) करेइ । कडालीइ घोडअस्स सोहा भवइ । वेसरो गद्दभत्तो आसत्तो य भिन्नो भवइ । पसूणं विसाणाई परा मारिउं गियरक्खणट्ठ य सत्थं भवइ ।
धातु प्रयोग
आय रिएण दसविरत्ताप्पाणी दिक्खि । भवयाणं मुहो अइ दिप्पइ । तुझ गीइयं सुणिऊणं अहं दिप्पामि । देवा देवीओ यावि दिवंति । महावीरेण
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