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________________ ५८ शतक शब्दरूप (३) F शब्द संग्रह (पशु वर्ग १) सिंह-सीहो, सिंघो, केसरी चीता-चित्तो बाघ–सादुलो, वग्यो भालू, रीछ-भल्लू, रिच्छो हाथी-हत्थी, करी, गयो घोडा----घोडओ, आसो भंसा-महिसो गेंडा---गंडयो खग्गी (पुं) खच्चर-वेसरो चितकबरा-चित्तो सींग-विसाणं पूंछ-पुच्छं घोडे के मुख को बांधने का शोभा-सोहा वस्त्र-कडाली धातु संग्रह दिक्ख ---दीक्षा देना दिस-कहना दिप्प-चमकना दुक्ख-दर्द होना दिप्प-तृप्त होना दुम्मण--उद्विग्न होना, उदास होना दियाव-देना दुरुह-आरूढ होना, चढना तिरोहा-अन्तहित होना, दुस्स-द्वेष करना ___ अदृश्य होना, लोप करना दिव---क्रीडा करना ऋकारान्त पित शब्द ऋकारान्त शब्द दो तरह के माने जाते हैं—(१) संबंधसूचक विशेष्य और (२) संबंध सूचक विशेषण । जो शब्द मूलतः ऋकारान्त हैं वे संबंधसूचक विशेष्य हैं। जैसे-जामातृ, पितृ, मातृ, भ्रातृ आदि। जो शब्द तच या तृन् प्रत्ययान्त हैं वे संबंधसूचक विशेषण हैं। जैसे--कर्तृ, दातृ, भर्तृ आदि । प्रथमा तथा द्वितीया के एक वचन को छोडकर शब्द के अंतिम ऋकार को विकल्प से उ हो जाता है। तब वह उकारान्त शब्द बन जाता है। उसके रूप साहु की तरह चलते हैं । विकल्प के दूसरे पक्ष में शब्द के अंतिम ऋकार को अर तथा आर हो जाता है। शब्द अकारान्त होने से उसके रूप वच्छ की तरह चलते हैं । संस्कृत का पितृ शब्द प्राकृत में पितु, पिउ, पितर और पिअर के रूप में प्रयोग में आता है। पितु का रूप पिउ और पितर का रूप पिअर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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