SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१६ प्राकृत वाक्यरचना बोध साधु से प्रार्थना की कि मेरे घर पधारने की कृपा करो । साधु निस्वार्थ उपदेश देते हैं । आचार्य शिष्य को उसकी त्रुटि पर ध्यान दिलाते हैं । जो गति करता है वह अपने गन्तव्य स्थान पर पहुंच जाता है ( पहुच्चइ ) । आज कौन राजा का अभिषेक करेगा ? जीवन का दान देना बहुत तुम्हारा व्यवहार मेरे हृदय को तोडता है । अध्यापक सेठ से पुस्तकें दिलाता है । कठिन कार्य है । गरीब लडके को प्रश्न १. पुंलिंग इकारान्त शब्द से परे ङसि और ङस् को क्या आदेश किस नियम से होता है ? उसका क्या रूप बनता है ? लिखो । २. शस्, भिस्, भ्यस् और सुप् प्रत्यय परे होने पर अकारान्त पुंलिंग शब्द के उकार को दीर्घ किस-किस नियम से होता है ? उसके रूप. भी लिखो । ३. सि प्रत्यय परे होने पर इकारान्त शब्द के इकार को दीर्घ करने वाला कौन सा नियम है ? ४. पुंलिंग उकारान्त शब्द से परे जस् और शस् प्रत्यय को किस नियम से क्या-क्या होता है ? उसका रूप भी लिखो । ५. चमगादड, उल्लू, बत्तक, बाज, गौरैया, मुर्गा, क्रौंच, टिटिहिरी, भृंग और चाष पक्षियों के लिए प्राकृत के शब्द लिखो । ६. दम, दय, दव, दार दाव, अइंच, दलय, दवाव और दलाव धातुओं के अर्थं बताओ तथा उन्हें वाक्य में प्रयोग करो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy