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शब्दरूप (२)
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नियम ४७५ (टो णा ३१२४) पुंलिंग तथा नपुंसक लिंग में इका र और उकार से परे टा को णा होता है। मुणिगा, गामणिणा । साहुणा, खलपुणा । दहिणा, महुणा ।।
नियम ४७६ (सि-तोः-पुं-क्लीवे वा ३।२३) पुंलिंग तथा नपुंसक लिंग में वर्तमान इकार और उकार से परे ङसि तथा ङस् को विकल्प से णो होता है। मुणिणो, साहुणो । दहिणो, महुणो। मुणीओ, मुणीउ, मुणीहितो । साहूओ, साहूउ, साहूहितो । मुणिस्स, साहुस्स।
नियम ४७७ (ईदूतो ह्रस्वः ३४२) संबोधन में ईकारान्त और ऊकारान्त शब्द को ह्रस्व होता है । हे गामणि, हे वहु । हे खलपु ।
नियम ४७८ (वो तो डवो ३।२१) पुंलिंग में उकार से परे जस् को डवो (अवो) आदेश विकल्प से होता है । साहवो, साहओ, साहउ।
__ नियम ४७६ (क्विपः ३।४३) क्विप् प्रत्यान्त ईकारान्त और ऊकारान्त शब्द हों तो वे ह्रस्व हो जाते हैं। गामणिणा, खलपुणा। गामणिणो, खलपुणो। प्रयोग वाक्य
जउआ निसाए उड्डेइ । बत्तओ पाओ जले वसइ । उलओ दिणे पासिउ न सक्कइ । सेणो पक्खिणो हणइ । चडयो नीडं णिम्माइ। कुक्कुडो सूरियोदयस्स पुत्वमेव णियतसमये जंपइ। टिट्टिभस्स जपणं को जाणइ ? चासो पक्खी कम्मि पएसे वसइ ? कोंचस्स विसये किं तुम जाणसि ? भिगो एगस्स पक्खिणो अभिहाणं विज्जइ । धातु प्रयोग
साहगो इंदियाइं दमेइ । साहू सावगं दयइ । धणी णिद्धणाय वत्थं दलयइ । रमेसो सोहणत्तो धणं दलावेइ, दवावेइ वा । मुणी गामाणुगामं दवइ । निवो नियपुत्तं अइंचइ। साह जणा णाणं देइ । तुज्झ कडुवयणं मझ हिययं दारइ । तावसो धणि दावइ। प्राकृत में अनुवाद करो
बत्तख जल में अधिक रहती है । उल्लू की आंखें मोटी होती हैं। बाज से पक्षी डरते हैं । गौरैया उछल-उछल कर चलती है। मुर्गे का शब्द सुनकर लोग समय का अनुमान लगाते हैं । क्रौंच पति पत्नी साथ रहते हैं। टिटिहिरी क्या बोलती है ? चाष क्या खाना पसंद करता है ? भंग उड़ने वाला एक पक्षी है। चमगादड आकाश में उडते समय अपने पंखों को अधिक हिलाता
बातु का प्रयोग करो
सासू के उपालंभ देने पर बहू अपने मन का दमन करती है। श्रावक
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