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प्राकृत वाक्यरचना बोध
दकार भाषान्तर (शौरसेनी, मागधी) के उपयोग के लिए किया गया है।
नियम ४६५ (भ्यसस् त्तो-दो-दु-हि-हिं तो-सुतो ३६) अकार से परे भ्यस् को तो, दो, दु. हि, हिंतो और सुतो आदेश होता है ।
नियम ४६६ (भ्यसि वा ३।१३) भ्यस् को होने वाले आदेश परे होने पर अ को दीर्घ विकल्प से होता है। वच्छत्तो, वच्छाओ, वच्छाउ, वच्छाहि, वच्छेहि, वच्छाहितो वच्छेहितो, वच्छासुंतो, वच्छेसुंतो।
नियम ४६७ (उसः स्सः ३।१०) अकार से परे ङस् को स्स होता है। वच्छस्स ।
नियम ४६८ (3 म्मि हु: ३।११) अकार से परे ङि को डे तथा म्मि होता है । वच्छे, वच्छम्मि ।
नियम ४६६ (डो दी? वा ३।३८) अकारान्त शब्दों से आमंत्रण अर्थ को होने वाला डो प्रत्यय तथा इकारान्त और उकारान्त शब्दों को होनेवाला दीर्घ विकल्प से होता है । हे वच्छ, हे वच्छो। प्रयोग वाक्य
जणा तित्तिरा पालेति । लावगाण मंसं यवना खाअंति । सारसाण चंचू पलंबा भवइ । हंसो खीरणीराइं विवेचिउ समत्थो अत्थि । खंजणो कस्सि पएसम्मि भवइ ? चायगो मुहं उग्घाडिऊण मेहं पेक्खइ। मोरो भारहवासस्स रटुपक्खी अत्थि । कंको दीहपाओ भवइ। कुररो मच्छणासणं करेइ । गरुडो परिखणो राया होइ। धातु प्रयोग
सेवगो सामि थवइ । सो आयरिअमुहेण जिणवयणं सुणिऊण थिंपइ । ते पासणाहं थुअंति । सो मुहु मुहु कहं थुक्कइ ? तिणा तुमं थुक्कारिओ। सावगा जिणे थुणंति । सो मिट्ठान्नं भुंजिऊण थेप्पइ । सप्पो सव्वे दंसइ। रमेसो सुवसंगहालयं दंसावेइ । बालो ससिं दक्खइ । प्राकृत में अनुवाद करो
तीतर यहां से कब उड गया ? यह वटेर कहां से आ रहा है ? सारस का रंग सफेद होता है । हंस में दूध और पानी को अलग-अलग करने की जो शक्ति है वह दूसरों में नहीं है । खंजन पक्षी के विषय में तुम क्या जानते हो ? पपीहा तालाब का पानी नहीं पीता है। चकवा के प्रेम का उदाहरण लगता है। मोर राजस्थान में अधिक पाए जाते हैं। कंक की पृष्ठ लोह के समान होती है । कुरर मच्छलियों को मारता है । गरुड सबसे ऊंचा उडता है। धातु का प्रयोग करो
तुम भगवान महावीर की स्तुति करते हो। शांत-सुधारस का पान कर वह तृप्त हो गया। गुणवान् व्यक्तियों की स्तुति करने से अपना लाभ होता
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