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शब्दरूप (१)
२११
सि
जस्
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विभक्ति प्रत्यय विभक्ति एकवचन
बहुवचन संस्कृत प्राकृत
संस्कृत प्राकृत प्रथमा
लोप द्वितीया अम्
शस् लोप तृतीया
भिस् हि, हिं, हिँ चतुर्थी x पंचमी सि त्तो, दो (ओ) दु(उ) भ्यस् तो, दो (ओ)दु (उ) हि, हितो, लुक्
हि, हितो, सुंतो षष्ठी उस्
स्स
आम् ण, णं सप्तमी डि डे (ए) म्मि सुप् सु, सुं संबोधन सि ओ, लोप
जस्
लोप नियम ४५६ (अतः से?: ३१२) अकारान्त नाम से परे स्यादि के सि को डो होता है । वच्छो ।
नियम ४५७ (जस्-शस्-सि-तो-दो-द्वामि दीर्घः ३।१२) जस्, शस् और ङसि इन प्रत्ययों के परे होने पर अकार दीर्घ होता है । वच्छा।
नियम ४५८ (जस्-शसो लुंक ३.४) अकारान्त शब्द से परे जस् एवं शस् का लोप हो जाता है । वच्छा, वच्छे ।
नियम ४५६ (अमोस्य ३३५) अकार से परे अम् के अकार का लोप हो जाता है । वच्छं।
मियम ४६० (टा आमोण: ३।६) अकारान्त शब्द से परे टा तथा षष्ठी के बहुवचन आम् को ण होता है ।
नियम ४६१ (टाण शस्येत् ३३१४) टा के आदेश ण तथा शस् प्रत्यय परे हो तो अकार को एकार होता है।
(क्त्वा-स्यादेर्ण-स्वोर्वा ११२७) नियम ७२ से क्त्वा और स्यादि प्रत्ययों के ण तथा सु के आगे अनुस्वार का आगम विकल्प से होता है । वच्छेणं, वच्छेण । वच्छेसु, वच्छेसु ।
नियम ४६२ (भिसो हि हि हि ३१७) अकार से परे भिस् के स्थान पर हि, हिँ (सानुनासिक) और हिं (सानुस्वार) आदेश होता है।
नियम ४६३ (भिस्भ्यस्सुपि ३।१५) भिस्, भ्यस् और सुप् परे हो तो अ को ए हो जाता है। वच्छेहि, वच्छेहि, वच्छेहिं । वच्छेहि, वच्छेहितो, वच्छेसंतो। वच्छेसु, वच्छेसुं।
नियम ४६४ (सेस् त्तो-दो-दु-हि-हितो-लुक ३८) अकार से परे ङसि को तो, दो (ओ) दु (उ), हि, हितो, लोप-ये छह आदेश होते हैं । वच्छत्तो, वच्छाओ, वच्छाउ, वच्छाहि । वच्छाहितो, वच्छा। दो और दु में
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