SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६ शब्दरूप (१) (पुंलिंग अकारान्त शब्द) शब्द संग्रह (पक्षी वर्ग २) तीतर-तित्तिरो खंजन---खंजणो वटेर-लावओ, लावगो पपीहा--चायवो, चायगो सारस--सारसो चकवा-चक्कवाओ, चक्कआओ गरुड-गरुडो, गरुलो मोर-मोर, अल्लल्लो (दे०) हंस-हंसो कुरर--कुररो कंक-कंको घोंसला—णीडं, गेहूं शाखा—-डाली धातु संग्रह थव-स्तुति करना थुण-स्तुति करना थिप-तृप्त होना थेप्प-तृप्त होना, संतुष्ट होना थुअ-स्तुति करना दस-दांत से काटना थुक्क थूकना दंसाव--दिखलाना थुक्कार-तिरस्कार करना दक्ख-देखना, अवलोकन करना शब्दों के विषय में० किसी भी लोक व्यापक भाषा में द्विवचन सूचक प्रत्यय अलग उपलब्ध नहीं होते। इसी प्रकार लोक व्यापक भाषा प्राकृत में भी द्विवचन दर्शक अलग प्रत्यय नहीं है। द्विवचन का अर्थ सूचित करने के लिए शब्द के पीछे दो शब्द जोडकर बहुवचन के प्राकृत रूपों का प्रयोग करना होता है। ० चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। नमो देवाय--नमो देवस्स । ० अधिकांशतया लिंग का निर्णय शब्द के अंतिम वर्ण के आधार पर किया जाता है। नियम ४२८ (द्विवचनस्य बहुवचनम् ३।१३०) स्यादि तथा त्यादि की सब विभक्तियों के द्विवचन को बहुवचन होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy