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सस्वर व्यंजन आदेश
शब्द संग्रह (काल वर्ग २) वर्तमानकाल–पडिपुन्न
अतीतकाल-अईओ भविष्यकाल-अणागयं
युग-~-जुगो वर्ष-वरिसो, संवच्छरो
वसंत-वसंतो ग्रीष्म-गिम्हो
वर्षा-वरिसा शरद्-सरयो
हेमंत-हेमंतो शिशिर-सिसिरो
कल्पना-कप्पणा
लहर-उम्मि (स्त्री)
धातु संग्रह णिज्झ स्नेह करना
तणुअ-पतला होना तडप्फड-तडफडाना
तज्ज--डांटना ताड-ताडना, पीटना
तण-विस्तार करना तुड-टूटना, अलग होना
तोल-तोलना पकर-कार्य का प्रारंभ करना
तक्क-तर्क करना स्वर+सस्वरव्यंजन आदेश
स्वर- व्यंजन युक्त स्वर स्वर और उससे आगे स्वर सहित व्यंजन । इन तीनों को जो एक आदेश होता है उसे स्वर और सस्वर व्यंजन आदेश कहते हैं।
नियम ४३५ (एत्त्रयोदशादी स्वरस्य सस्वरव्यञ्जनेन १११६५) त्रयोदश इस प्रकार के संख्या शब्दों में आदि स्वर और उसके आगे व्यंजन सहित स्वर को एकार आदेश होता है। त्रयोदश (तेरह) त्रिविंशतिः (तेवीसा) त्रित्रिंशत् (तेत्तीसा)।
नियम ४३६ (स्थविर-विचकिलायस्कारे १११६६) स्थविर, विचकिल और अयस्कार शब्दों के आदि स्वर और उसके आगे स्वर सहित व्यंजन को एकार आदेश होता है । स्थविरः (थेरो) विचकिलम् (वेइल्लं) अयस्कारः (एक्कारो)।
नियम ४३७ (वा कदले १११६७) कदल शब्द के आदि स्वर और
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