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प्राकृत वाक्यरचना बोध
दु7 लोप-उदुम्बरः (उम्बरो, उउम्बरो) दे 7 लोप-दुर्गादेवी (दुग्गा-वी, दुग्गाएवी)
नियम ४३३ (किसलय-कालायस-हृदये यः १।२६९) किसलय कालायस और हृदय शब्दों के सस्वर यकार का लुक विकल्प से होता है। य 7 लोप-किसलयम् (किसलं, किसलयं) कालायसम् (कालासं, कालायसं)
हृदयम् (हिअं, हिअयं)
नियय ४३४ (यावत्तावज्जीवितावर्तमानावट-प्रावारक देवकूलवमेवे वः १२२७१) यावत् आदि शब्दों में सस्वर वकार का लुक विकल्प से होता है। 47 लोप---अवटः (अडो, अवडो) आवर्तमान: (अत्तमाणो, आवत्तमाणो)
___ एवमेव (एमेव, एवमेव) तावत् (ता, ताव) देवकुलम् (देउलं,
देवउल) प्रावारकः (पारओ, पावरओ) यावत् (जा, जाव) वि 7 लोप-जीवितम् (जीअं, जीविअं) प्रयोग वाक्य .
___ सामाइयस्स समयो एगो मुहुत्तो भवइ । समयो कालस्स सुहुमो भागो अत्थि, तस्स विभागो न भवइ । आयरिआ अत्थ पंचदिवसा ठास्संति । अज्ज दिवहस्स अवेक्खा रत्ती पलंबा अस्थि । णक्खत्तमासे सत्तवीसा णक्खत्ता होति । मज्झ जम्मो सुक्कपक्खे जाओ। उसावेलाइ न सोअणिज्जं । मज्झण्हे सुत्तस्स सज्झायं भवइ । संझा पडिक्कमणं काअव्वं । कि सोमवारे तुमं पुव्वण्हे मोणं भजसि ?
धातु प्रयोग
दमिइंदियाण रागसत्तू चित्तं न धरिसेइ । तुज्झ पासे मइनाणं विज्जइ । गिम्हउउम्मि मुणी विहारसमये सिज्जइ । सूई सरीरं विज्झइ । घरे फलाई को वि न खाअइ अओ ठिआई फलाई कुहेति । तुज्झ असुद्धं उच्चारणं ममं बाधइ । संजमी साहू कयाइ न सवइ । सो सुवरूवे मज्जइ । प्राकृत में अनुवाद करो
वह एक मुहूर्त के लिए सामायिक करता है। एक शब्द बोलने में काल का सूक्ष्म भाग कितना लगता है ? वह दिन में नहीं सोता है । क्या तुम रात्रि में प्रतिदिन स्वाध्याय करते हो ? चैत्र का महिना सबसे अच्छा लगता है। कृष्ण पक्ष में भी चंद्रमा का प्रकाश रहता है। प्रात:काल वह गुरुदर्शन को जाता है। क्या तुम मध्याह्न में भोजन करते हो? संध्या के समय स्वाध्याय करनी चाहिए । दिन के पूर्वभाग में वह भोजन करता है। धातु का प्रयोग करो
राग से हर आदमी विचलित हो जाता है। रूपयों के प्रलोभन से
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