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प्राकृत वाक्यरचना बोध
नियम ४२१ (तलादौ वा २०६८) तेल आदि शब्दों में अनादि यथादर्शन (जैसा देखा जाता है) अन्त्य और अनन्त्य व्यंजन द्वित्व हो जाता है। अन्त्यवर्ण- तैलं (तेल्लं) । मण्डूकः (मण्डुक्को) । विचकिल: (वेइल्लं)।
ऋजुः (उज्जू) । व्रीडा (विड्डा)। प्रभूतं (वहुत्तं)। अनन्त्यवर्ण-स्रोतस् (सोत्तं) । प्रेमन् (पेम्म) । यौवनं (जुव्वणं)
आर्ष में प्रतिस्रोतस् (पडिसोओ) । विस्रोतसिका (विस्सोअसिआ)।
नियम ४२२ (द्वितीय-तुर्ययोरुपरिपूर्वः २।६०) द्वित्व होने वालो वर्ण वर्ग का दूसरा वर्ण हो तो पहला और चौथा वर्ण हो तो तीसरा वर्ण हो जाता है। शेष-व्याख्यानं (वक्खाणं) । व्याघ्रः (वग्घो)। मूर्छा (मुच्छा)। निर्झरः
(निज्झरो) । काष्ठं (कट्ठ) । तीर्थं (तित्थं) । निर्धनः (णिद्धणो)।
निर्भरः (निब्भरो) । गुल्फ (गुप्फ)। आदेश-यक्षः (जक्खो) । अक्षि (अच्छी)। मध्यं (मझं) पृष्ठम् (पट्टी) ।
वृद्धः (वुड्ढो)। हस्तः (हत्थो) । आश्लिष्ट: (आलिद्धो)। पुष्पम् (पुप्फ) । विह्वलः (भिब्भलो) ।
(दीर्धेवा २२९१) नियम ३७१ से दीर्घ शब्द में शेष घ को ग विकल्प से होता है। दीर्घः (दिग्घो, दीहो) ।।
नियम ४२३ (समासे वा २९७) शेष और आदेश वर्ण समास में द्वित्व विकल्प से होते हैं। नदीग्रामः (नइग्गामो, नइगामो) । देवस्तुतिः (देवत्थुई, देवथुई)। बहुलाधिकार से शेष और आदेश के बिना भी होता है--- सपिपासः (सपिवासो, सप्पिवासो)। प्रतिकूलं (पडिक्कूलं, पडिकलं)। अदर्शनम् (अइंसणं, अदंसणं)।
नियम ४२४ (सेवादी वा २VEE) सेवा आदि शब्दों में अनादियथादर्शन अन्त्य और अनन्त्य वर्ण द्वित्व विकल्प से होता है। अन्त्यस्य-सेवा (सेन्वा, सेवा) । नीडम् (नेड्डं, नीडं) । नखाः (नक्खा,
नहा) । निहित: (निहित्तो, निहिओ)। व्याहृतः (वाहित्तो, वाहिओ) । मृदुकं (माउक्कं, माउअं)। एकः (एक्को, एओ) । कुतूहलं (कोउहल्लं, कोउहलं)। व्याकुलः (वाउल्लो, वाउलो)। स्थूल: (थुल्लो , थोरो) । हूतं, भूतं (हुत्तं, हूअं) । दैवम् (दइव्वं, दइवं) । तूष्णीकः (तुण्हिक्को, तुण्हिओ) । मूकः (मुक्को, मूओ) ।
स्थाणुः (खण्णू, खाणु) । स्त्यानं (थिण्णं, थीणं)। अनन्त्यस्य-अस्मदीयम् (अम्हक्केरं, अम्हकेरं)। चेअ (तं च्चेअ, तं चेअ)
चिअ (सो च्चिअ, सो चिम)।
नियम ४२५ (न दीर्घानुस्वारात् २०६२) लाक्षणिक (कृत) अलाक्षणिक (अकृत) दीर्घस्वर और अनुस्वार से परे शेष और आदेश वर्ण द्वित्व
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