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द्वित्व
नहीं होता। कृत दीर्घ-निःश्वासः (नीसासो) । स्पर्शः (फासो) । अकृत वीर्घ--पार्श्वम् (पास) । शीर्षम् (सीस) । ईश्वरः (ईसरो) । द्वेष्यः
(वेसो)। कृत अनुस्वार-यस्रम् (सं)। अकृत अनुस्वार--सन्ध्या (संझा) । विन्ध्यः (विंझो) ।
नियम ४२६ (र-होः २।६३) रकार और हकार द्वित्व नहीं होते । रकार शेष नहीं रहता। आदेश र-सौन्दर्यम् (सुन्देरं) । ब्रह्मचर्यम् (बम्हचेरं) । शेष-ह-विह्वलः (विहलो) आदेश ह-कार्षापणः (कहावणो)।
नियम ४२७ (धृष्टद्युम्ने णः २२६४) धृष्टद्युम्न शब्द में आदेश ण को द्वित्व नहीं होता । धृष्टद्युम्नः (धट्ठज्जुणो)
नियम ४२८ (कणिकारे वा २९५) कणिकार शब्द में शेष ण द्वित्व विकल्प से होता है । कणिकारः (कणिआरो, कण्णिआरो)।
नियम ४२६ (दृप्ते २।९६) दृप्त शब्द में शेष वर्ण द्वित्व नहीं होता । दृप्तः (दरिओ) । दरिम सीहेण (दृप्तसिंहेन) प्रयोग वाक्य
माअरा पुत्तस्स चविडं देइ । सो काणच्छीअ इतिथ पासइ । जो मइरं (सुरं) पिवइ तस्स पडणं धुवं । साहुण सागयं चरित्तस्स भवइ न उ वत्तीए (व्यक्ति)। एअं कोसेयं महग्धं अत्थि । माणुसजम्मो आगमे महग्धविओ कहिओ । काराए को गच्छइ ? कितवो टेंटाए जूअं खेलइ। राजीवेण इंदिराचियगाए अग्गी दिण्णो । तुज्झ कज्ज सग्छ अस्थि । भोयणस्स पच्छा णवोद्धरणं न मोत्तव्वं । जो सच्छंदो (अणहट्टयो) होइ सो अणुसासणस्स महत्तं न जाणइ।. धातु प्रयोग
सेहो साहू संतसुहारसं घोट्टइ। चंकमतस्स महावीरस्स देसणह्र जणा आगआ । जो सइ सुरं चक्खइ सो तस्स वसीभूओ भवइ। महावीरस्स दंसणं करित्ताण सो तूसइ । तवेण तवस्सी कम्मरयाई धुव्वइ। सेवओ सामि पइदिवसं चंपइ । अमुणा सद्धि को चंपइ ? साहू खवअसेणि चंपइ । सा साविया दिणे सइ जेमइ । माली पुप्फाई चिणइ । सो निसाए न जम्मइ ।
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