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स्वरभक्ति (स्वरागम )
नियम ४०६ ( क्ष्मा - श्लाघा - रत्नेन्त्यव्यञ्जनात् श्लाघा और रत्न इन तीन शब्दों में अन्त्य व्यंजन से पूर्व होता है ।
क्ष्म 7 छम -- क्ष्मा ( छमा ) ।
श्ला > सला -- श्लाघा ( सलाहा ) ।
न> तन -- रत्नं ( रयणं ) ।
नियम ४०७ ( प्लक्षे लात् २।१०३ ) प्लक्ष शब्द में अन्त्य व्यंजन से
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२।१०१ ) क्ष्मा अकार का आगम
पूर्व अकार का आगम होता है ।
प्ल 7 पल - प्लक्ष: ( पलक्खो ) ।
अ और इ का आगम
नियम ४०८ ( स्निग्धे वादितौ २।१०६) स्निग्ध शब्द में नकार से पहले अकार और इकार का आगम विकल्प से होता है ।
स्न > सणि, सिणि स्निग्धं (सणिद्धं, सिणिद्धं, निद्धं ) ।
नियम ४०६ ( कृष्णवर्णे वा २।११०) कृष्ण शब्द वर्ण अर्थ में हो तो न से पहले अकार और इकार का आगम विकल्प से होता है । ष्ण 7 सण, सिण - कृष्ण: ( कसणो, कसिणो, कहो ) ।
नियम ४१० ( उच्चार्हति २।१११ ) अर्हत् शब्द में संयुक्त के अन्त्य व्यंजन से पहले अकार, इकार और उकार का आगम विकल्प से होता है । है / रह, रिह, रुह - अर्हत् (अरहो, अरिहो, अरुहो) ।
इकार का आगम
नियम ४११ ( हं श्री - ही कृत्स्न-क्रिया दिष्या स्वित् २।१०४ ) इन शब्दों में संयुक्त व्यंजन के अन्त्य व्यंजन से पूर्व इकार का आगम होता है । 7 रिह - अर्हति ( अरिहइ ) । अर्हा ( अरिहा) । गर्हा ( गरिहा ) । बर्हः( बरिहो ) ।
> सिर - श्री : ( सिरी) 1
ह 7 हिर- ह्रीः (हिरी ) । ह्रीतः (हिरिओ ) । अह्नीकः (अहिरिओ ) । स्न 7 सिण—कृत्स्न: ( कसिणो ) ।
ऋ 7 फिर - क्रिया (किरिआ ) ।
नियम ४१२ (लात् २।१०६ ) संयुक्त शब्द में अन्त्य व्यंजन ल से पहले इ का आगम होता है । क्लिन्नं (किलिन्नं) क्लिष्टं ( कि लिट्ठे ) श्लिष्टं (सिलिट्ठ) प्लुष्टं ( पिलुट्ठ) प्लोष: ( पिलोसो) श्लेष्मा ( सिलिम्हो ) श्लेष : ( सिलेसो) शुक्लं (सुक्किलं) श्लोकः ( सिलोओ) क्लेश: ( किलेसो) अम्लं ( अम्बिलं ) ग्लानं (गिलाण ) म्लानं ( मिलाणं) क्लान्तं ( किलन्तं ) ।
नियम ४१३ ( स्याद् भव्य चैत्य - चौर्य समेषु यात् २।१०७) भव्य,
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