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पीपल · - अस्सत्थो वरगद - वडो
अशोक - असोयो
बबूल - बब्बूलो मौलसिरी - बउलो
-O
टहनी डाली वंशलोचन - वंसरोयणा
स्वरभक्ति (स्वरागम)
शब्द संग्रह ( वृक्ष वर्ग )
गुमगुम- मधुर अव्यक्त ध्वनि करना ।
गुभ — गूंथना
गोव-- छिपाना
धत्त -- ग्रहण करना
घुरुक्क - घुडकना, गरजना
स्वरभक्ति-
चंदन - चंदणो नीमणिबो
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पीलु -- पीलू (पुं)
वांस
वंसो चिरौंजी-पिआलो
अपराधी - अवराहिल्लो
धातु संग्रह
घस - रगडना, घिसना विअंभ - जंभाई खाना
विअड - प्रकट होना विअप्प — संशय करना
संयुक्त व्यंजन में एक व्यंजन य, र, ल, व और ह हो या अनुनासिक हो उन्हें अ, इ, ई और उ में से किसी एक स्वर का आगम कर संयुक्त व्यंजन को सरल बना दिया जाता है, उसे स्वरभक्ति, विप्रकर्ष, विश्लेष या स्वरविक्षेप कहते हैं ।
अ का आगम----
नियम ४०४ ( स्नेहाग्न्यो र्वा २।१०२ ) स्नेह और अग्नि शब्द में अन्त्य व्यंजन से पूर्व अकार का आगम विकल्प से होता है ।
स्न > सण -- स्नेहः (सणेहो, नेहो ) ।
ग्न > गण -- अग्नि: ( अग्गी ) ।
नियम ४०५ ( शाङ्गात् पूर्वोत् २।१००) शाङ्ग शब्द में ङ से पूर्व अकार का आगम होता है ।
क्र 7 रङग - शाङ्ग : ( सारङ्गी ) ।
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