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________________ ५० पीपल · - अस्सत्थो वरगद - वडो अशोक - असोयो बबूल - बब्बूलो मौलसिरी - बउलो -O टहनी डाली वंशलोचन - वंसरोयणा स्वरभक्ति (स्वरागम) शब्द संग्रह ( वृक्ष वर्ग ) गुमगुम- मधुर अव्यक्त ध्वनि करना । गुभ — गूंथना गोव-- छिपाना धत्त -- ग्रहण करना घुरुक्क - घुडकना, गरजना स्वरभक्ति- चंदन - चंदणो नीमणिबो Jain Education International पीलु -- पीलू (पुं) वांस वंसो चिरौंजी-पिआलो अपराधी - अवराहिल्लो धातु संग्रह घस - रगडना, घिसना विअंभ - जंभाई खाना विअड - प्रकट होना विअप्प — संशय करना संयुक्त व्यंजन में एक व्यंजन य, र, ल, व और ह हो या अनुनासिक हो उन्हें अ, इ, ई और उ में से किसी एक स्वर का आगम कर संयुक्त व्यंजन को सरल बना दिया जाता है, उसे स्वरभक्ति, विप्रकर्ष, विश्लेष या स्वरविक्षेप कहते हैं । अ का आगम---- नियम ४०४ ( स्नेहाग्न्यो र्वा २।१०२ ) स्नेह और अग्नि शब्द में अन्त्य व्यंजन से पूर्व अकार का आगम विकल्प से होता है । स्न > सण -- स्नेहः (सणेहो, नेहो ) । ग्न > गण -- अग्नि: ( अग्गी ) । नियम ४०५ ( शाङ्गात् पूर्वोत् २।१००) शाङ्ग शब्द में ङ से पूर्व अकार का आगम होता है । क्र 7 रङग - शाङ्ग : ( सारङ्गी ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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