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시시시시.
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प्राकृत वाक्यरचना बोध 4>र-अच्छेरं (आश्चर्यम् )। a>र--धारी (धात्री) नियम ३४१ से) ह>र--उत्थारो (उत्साहः) (नियम २८४ से) हं>र-दसारो (दशाहः) (नियम ४०१ से)
(नियम ३७० २१७३) की वृत्ति- इत्यस्य तु वा लो भवति । >ल-कोहली (कूष्माण्डी)।
नियम ३६५ (पर्यस्त-पर्याण-सौकुमार्ये ल्लः २०६८) पर्यस्त पर्याण, सौकुमार्य शब्दों के र्य को ल्ल होता है। पं>ल्ल-पल्लढें, पल्लत्थं (पर्यस्तम्) । पल्लाणं (पर्याणाम्) । सोअमल्लं
(सौकुमार्यम्)।
नियम ३६६ (दोघे वा २१६१) दीर्घ शब्द के शेष घ को ग विकल्प से होता है। घं>ग--दिग्धो, दीहो (दीर्घः)।
नियम ३६७ (लो ल्हः २१७६) ल के स्थान पर ल्ह होता है । ह>ल्ह-कल्हारं (कह्लारम्) पल्हाओ (प्रह्लादः) ।
नियम ३६८ (बृहस्पति-वनस्पत्योः सो वा २०६६) बृहस्पति और वनस्पति शब्दों के स्व को स विकल्प होता है। स्प>स-बहस्सई (बृहस्पतिः) वणस्सई (वनस्पतिः)।
नियम ३६६ दुःख-वक्षिण-तीर्थे वा २१७२) दुःख, दक्षिण और तीर्थ शब्द के संयुक्त को ह होता है। क्ष>ह-दाहिणो (दक्षिण:) दक्खिणो । स>ह-दुहं (दुःखम्) दुक्खं । >ह-तूहं (तीर्थम्) तित्थम् ।
नियम ३७० (वाष्पे होऽणि २१७०) वाष्प शब्द के रुप को ह होता है अश्रुवाची हो तो। प>ह-बाहो (वाष्प:) नेत्रजल ।
नियम ३७१ (कूष्माण्ड्यां मो लस्तु ण्डो वा २०७३) कूष्माण्डी शब्द के ष्मा को ह होता है । ण्ड को ल विकल्प से होता है। ष्मा>ह-कोहली, कोहण्डी (कूष्माण्डी)।
नियम ३७२ (कार्षापणे २१७१) कार्षापण शब्द के र्ष को ह होता है।
>ह-काहावणो (कार्षापणः)। प्रयोग वाक्य व आढकीदालीहिं सह तण्डुला सव्वे लोआ खाअंति । तंडुला सिग्धं पयंति (पचता है)। अमुम्मि वरिसम्मि सस्सपा अहिया भविहिति । कुद्दवं
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