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________________ १६० प्राकृत वाक्यरचना बोध नियम ३१८ ( अभिमन्यो जञ्जो वा २।२५) अभिमन्यु शब्द के न्य कोज और ञ्ज आदेश विकल्प से होता है । न्य > ज ज – अभिमन्युः (अहिमज्जू, अहिमञ्जू ) >ज - विद्वान् (विज्जं ) | ( नियम ३०९ से ) श>ज - ज्ञानं जाणं, (नियम ३६८ से ) । नियम ३१६ ( साध्वसध्य-हयां झः २।२६ ) साध्वस शब्द के ध्व तथा ध्य और ह्यय को झ आदेश होता है । ध्व>झ - साध्वसम् (सज्भसं ) । ध्य > -- बध्यते ( बज्झए ) ध्यानं ( झाणं ) ( सज्झाओ ) साध्यं (सज्झ ) ( उवज्झाओ ) । - सह्य: (सज्झो) (णज्झइ ) । ह्य झ ध्यायति ( झायइ) स्वाध्यायः विन्ध्यः (विञ्झो) उपाध्यायः मह्यम् (मज्झ ) गुह्यम् (गुज्झ ) नह्यति (नियम २९८ क्वचित् छी) से । क्ष - क्षीणं (झीणं) क्षीयते ( झिज्जइ ) प्रक्षीणं (पज्झीणं ) । बुद्ध्वा ( बुज्झा) (नियम ३०६ से ) । > नियम ३२० ( ध्वजे वा २।२७) ध्वज शब्द के ध्व को झ विकल्प से होता है । ध्व>झ – ध्वजः ( झओ, धओ ) । नियम ३२१ ( इन्धौ भा २२८) इन्धि धातु के न्ध को झा आदेश होता है । न्ष>झ—इन्धे (इज्झाइ) समिन्धे ( समिज्झाइ ) विइन्धे (विज्झाइ ) । नियम ३२२ ( वृश्चिके इचे अ र्धा २०१६) वृश्चिक शब्द के श्चि को ञ्चु आदेश होता है । श्चि वृश्चिकः ( विञ्चुओ ) । प्रयोग वाक्य पुदिणस्स अवलेहं भक्खि इच्छामि । तंदुलेज्जगसागो केण कओ तम्मि लोणं नत्थि ? गोजीहाए कयाइ जीवा भवंति । मज्झगिहे घोसाडई विज्जइ । तुमं कुम्हड कत्थ पाउणिस्ससि ? अंगारपक्करत्तालू अहियो साऊ भवइ । कागमईसागो अंतरवणे उवओगी भवइ । कलायसिंबाए वि सागो भवइ । समीफलसागो मलावरोहं भंजइ । कुत्थंभरीए अवलेहं को न इच्छइ ? आमभिडासागो मज्झं रोयइ । डिडिसो मरुभूमीए भवइ । गाजरसागो णियवण्णस्स सरिक्खं भुंजमाणस्स सरीरं करेइ । हलद्दाए सागो मए सइ ( एक बार ) भुत्तो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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