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________________ सरल व्यंजन परिवर्तन (५) १४७ संज्ञा है भी और एक अपेक्षा से नहीं भी है। प्रत्येक पद में विभक्ति आई हुई है, इसलिए पदसंज्ञा है। समास होने से विभक्ति का लुक हो जाता है, इसलिए पदसंज्ञा नहीं है। प्रत्येक पद के अंतिम शब्द को अन्त्य कह सकते हैं और समस्त पद एक शब्द बन जाता है इस दृष्टि से पूर्व के पद के अन्तिम शब्द को अन्त्य नहीं भी कह सकते । इसलिए समास में अन्त्यत्व और न अन्त्यत्व दोनों होते हैं। अन्त्य मानने पर लोप हो जाता है । अन्त्य न मानने पर लोप नहीं होता। सभिक्खू (सद्भिक्षुः) सज्जणो (सज्जनः) एअगुणा (एतद्गुणाः) तग्गुणा (तद्गुणाः) नियय २८६ (शरदादेरत् ११८) शरद्, आदि शब्दों के अन्तिम व्यंजन को अ आदेश हो जाता है। >अ--सरओ (शरद्) भिसओ (भिषक् ) नियम २८७ (दिक्-प्रावृषोः सः १११६) दिश् और प्रावृष् शब्दों के अन्तिम व्यंजन को स आदेश होता है। >स-दिसा (दिश्) पाउसो (प्रावृट्) नियम २८८ (आयुरप्सरसो वा ११२०) आयुष और अप्सरस् शब्दों के अंतिम व्यंजन' को विकल्प से स आदेश होता है। 7 स-दीहाउसो, दीहाऊ (दीर्घायुः) अच्छरसा, अच्छरा (अप्सराः) ..नियम २८६ (ककुभो हः १।२१) ककुभ् शब्द के अन्त्य व्यंजन को ह आदेश होता है। 7ह-कउहा (ककुभ्) नियम २६० (धनुषो वा १।२२) धनुष् शब्द के अन्तिम व्यंजन को विकल्प से ह आदेश होता है । पक्ष में लोप हो जाता है । 7ह, लोप-धणुहं, धणू (धनु:) नियम २६१ (रो रा १।१६) अन्त्य व्यंजन र यदि स्त्रीलिंग में हो तो उसे रा आदेश हो जाता है । 7 रा-गिरा (गिर्) धुरा (धुर्) पुरा (पुर्) । नियम २६२ (क्षुधो हा १११७) क्षुध शब्द के अन्त्य व्यंजन को हा आदेश होता है। 7हा-छुहा (क्षुध्) नियम २९३ (न श्रवुदोः १११२) श्रद् और उद् के अन्त्य व्यंजन का लुक नहीं होता। सद्धा (श्रद्धा) उग्गयं (उद्गतम्) उन्नयं (उन्नतम्) नियम २६४ (निर्युरो वर्ष १११३) निर् और दुर् के अन्त्य व्यंजन का लुक् विकल्प से होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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