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________________ ४० सरल व्यंजन परिवर्तन ( ३ ) अन्तिम व्यंजन परिवर्तन सहयोग – साउज्जं, साहज्जं, साहिज्जं श्मसान - मसाणं बातचीत -वत्ता, परिकहा चुम्बन - गुलं (दे० ) तरंग तरंगो शब्दसंग्रह (स्फुट) Jain Education International धातु संग्रह वेद-वेष्टित करना, लपेटना नव- नमना ओमील -- मुद्रित होना, बंद होना ओयत्त --- उलटाना, खाली करने के लिए नमाना गोष्ठी गोट्ठी प्रीति — पीई (स्त्री) कांति -कंती (स्त्री) आकृति -- आकिई, आगिई पिअरंज - भांगना, तोडना कण--- आवाज करना कम — उल्लंघन करना उम्मंच --- परित्याग करना पिंड - एकत्रित करना अन्तिम व्यंजन प्राकृत में व्यञ्जनान्त शब्द नहीं होते हैं । संस्कृत में जो शब्द व्यंजन अन्त वाले होते हैं उनका या तो लोप हो जाता है या उन्हे स्वर में तथा स्वर सहित व्यंजन में परिवर्तित कर दिया जाता है । कहीं अन्तिम व्यंजन को अनुस्वार में बदल दिया जाता है । इनमें कुछ नियम अन्यत्र भी आए हैं फिर भी अन्तिम व्यंजन से संबंधित होने के कारण यहां दिए गए हैं । नियम २८५ ( अन्त्य व्यंजनस्य १|११ ) शब्दों के अन्त में जो व्यंजन होता है उसका लोप हो जाता है । अन्तिम व्यंजन > लोप - जाव ( यावत्) ताव ( तावत् ) जसो ( यशस् ) तमो (तमस् ) जम्मो ( जन्मन्) पुण (पुनर् ) ( बहुलाधिकारात् अन्यस्थापि व्यंजनस्य मकारः १।२४ की वृत्ति) अन्तिम व्यंजन को म आदेश होता है । रुक्खं ( साक्षात् ) जं (यत्) तं (तत्) वसुं (विष्वक्) पिहं ( पृथक् ) सम्मं ( सम्यक् ) ( समासे तु वाक्यविभक्त्यपेक्षायां अन्त्यत्वं अनन्त्यत्वं च तेनोभयमपि भवति) समस्त पदों में सब पद मिलकर एक शब्द बन जाता है । इस दृष्टि से अन्तिम पद को छोड़कर पूर्व के पदों की एक अपेक्षा से पद For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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