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प्राकृत वाक्यरचना बोध
7 लुक् – निस्सहं, नीसहं ( नि: सहम् ) दुस्सहो, दूसहो ( दु:सहः ) दुक्खिओ, दुहिओ ( दुःखितः )
नियम २६५ (स्वरेत्तरश्च १०१४) अन्तर्, निर् और दुर् के अन्त्य व्यंजन का लुक नहीं होता स्वर परे हो तो । अन्तरप्पा (अन्तरात्मा ) निरवसेसं ( निरवशेषम् ) निरन्तरं ( निरन्तरम् ) दुरवगाहं ( दुरवगाहम् ) दुरुत्तरं ( दुरुत्तरम् ) ।
नियम २९६ ( स्त्रियामादविद्युत : १।१५) विद्युत् शब्द को छोडकर अन्त्य व्यंजन यदि स्त्रीलिंग में हो तो उसे आ आदेश होता है, लुक् नहीं । 7 आ - सरिआ (सरित्) पाडिवआ ( प्रतिपद् ) संपआ ( संपद् ) वाक्य प्रयोग
सो अमुम्मि कज्जमि भवंताण साउज्जं अवेक्खइ । सो मसाणे साहणं करेइ । वत्ताए तेणं अहं कहिओ जं साहुत्तं गहिहामि । पुत्तस्स गुले माअरा आनंद अनुभवइ । समुहस्स तरंगा गगणे उच्छलंति । साहूणं गोट्टीए का वत्ता णिच्छिया ? महावीरं पर गोयमस्स पीई आसि । तुज्झ मुहस्स कंती कहं मलिना जाओ । अमुम्मि विसये मज्झ को वि पण्हो नत्थि । तुज्झ आकिई मं अणुहरइ ।
धातु प्रयोग
सो रयणं कोसेयम्मि वेढइ | पिउस्स पायम्मि विणीया पुत्ता पगे नवंति । कमलविआसि पुष्पं निसाए ओमीलइ । सो घडम्मि जलपत्तं ओयत्तइ । जो नियमं पिअरंजइ सो पावस्स भागी भवइ । तीसे नेउरं कणइ । सो मणेणावि साहुणियमा न क्कमइ । पट्ठाणकाले मुणिणो आयरिअस्स समीवं उम्मुंचति । मुणिणो आयरिअस्स समीवे भिक्खं पिंडंति ।
प्राकृत में अनुवाद करो
आपके सहयोग से मैं परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाऊंगा । श्मसान में कौन साधना करता है ? बातचीत कैसे भंग हुई ? चुम्बन लेना स्नेह या ममता का रूप है । मन की तरंगें प्रतिक्षण उठती हैं । उसने गोष्ठी का निर्णय स्वीकार नहीं किया । प्रीति से कार्य सरलता से बन जाता है । ब्रह्मचर्य से मुख की कांति बढती है । गौतम के प्रश्नों का उत्तर भगवान महावीर ने दिया था । तुम्हारी आकृति आकर्षक है ।
धातु का प्रयोग करो
इस पुस्तक पर वस्त्र किसने लपेटा है ? वह अपने से बड़ों के प्रति नमन करता है । तुम कभी आंखें बंद करते हो कभी खोलते हो । वह घडे में घी का वर्तन उलटाता है । तुम गुस्से में कलम को तोडते हो । हार कभी भी
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