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प्राकृत वाक्यरचना बोध
श>ह-दह, दस (दश) दहबलो, दसबलो (दश बलः)। ष>ह-पाहाणो, पासाणो (पाषाणः)
नियम २८१ (स्नुषायां हो न वा १२२६१) स्नुषा शब्द के ष को ण्ह आदेश विकल्प से होता है। ष>ण्ह-सुण्हा, सुसा (स्नुषा)।
नियम २८२ (दिवसे सः १।२६३) दिवस शब्द के स को ह विकल्प से होता है। स>ह-दिवहो, दिवसो (दिवसः)।
नियम २८३ (हो घोनुस्वारात् ११२६४) अनुस्वार से परे ह को घ विकल्प से होता है। ह>घ-सिंघो, सीहो (सिंहः) संघारो, संहारो (संहारः) दाघो (दाहः) ।
नियम २८४ (वोत्साहे थो हश्च रः २०४८) उत्साह शब्द के संयुक्त को थ विकल्प से आदेश होता है । उसके योग में ह को र होता है। ह>र-उत्थारो, उच्छाहो (उत्साहः)। प्रयोग वाक्य
उज्जमेण सव्वाई कज्जाइं सिझंति । झाणेण सहावस्स परिवट्टणं जायइ । पच्छेण विणा ओसहीए को लाहो । तुज्झ मणोरहो सहलीभविस्सइ । खणमवि साहुसंगो कोडिपावणासणो भवइ। मज्जायाइ सुण्णं जीवणं जीवणं नत्थि । आयरियवराणं सागयं कया भविहिइ ? साहणं केसलुचणं भस्सेण सरलीभवइ। इअं खेत्तं सद्धालूणं अत्थि । जो सदो सवणे पडइ तं चिअ हं जाणामि । धातु प्रयोग
आयरिओ सीसं धम्मस्स मग्गं दरिसइ । अहं तुह उत्तरपत्ताई दिक्खामि । साहू इंदियाणि दमइ। कामभोगा णरं तावंति। पिआ पुत्तं ताडइ । सो मज्झ सरीरं संफुसइ । तुमं गिहं कहं वच्चसि ? कूरसासएण लोआ तसंति । प्राकृत में अनुवाद करो
___ कार्य की सिद्धि में उद्यम सबल साधन है। श्रावक के तीन मनोरथ होते हैं। अग्नि का स्वभाव जलाना है। साधु का स्वागत व्यक्ति का नहीं त्याग का होता है। औषधि के साथ पथ्य ज्यादा फल देता है। मनुष्य का शरीर जलने के बाद राख हो जाता है । मर्यादा हमारा प्राण है। इस क्षेत्र में धनी लोग बहुत हैं। संगति का फल अवश्य मिलता है। उसके श्रवण बहुत पटु हैं।
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