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________________ मध्यवर्ती सरल व्यंजन परिवर्तन (४) १४३ जवणिज्जं, जवणीअं (यवनीयम्) बिइज्जो, बीओ (द्वितीयः) पेज्जा, पेआ (पेया)। य>र-हारु (स्नायुः) ठाणांग, पण्हावागरण, विवाहपण्णत्ति आदि आगमों में मिलता है। नियम २७३ (छायायां होऽकान्तौ वा २२४६) छाया शब्द अकान्ति अर्थ में हो तो छाया के य को ह विकल्प से होता है। य>ह-छाही (छाया) धूप का अभाव । सच्छाहं, सच्छायं ।। नियम २७४ (किरि-मेरे रो डः १।२५१) किरि और भेर शब्द के र को ड होता है। र >ड-किडी (किरिः) भेडो (भेरः) पिहडो (पिठरः)----(पिठरे हो वा रश्च' ड:) नियम २४० सेठ को ह होने पर र को ड हुआ है। नियम २७५ (पर्याणे डा वा श२५२) पर्याण शब्द के र को डा विकल्प से होता है। र>डा-पडायाणं, पल्लाणं (पर्याणम् )। नियम २७६ (करवीरे णः १०२५३) करवीर शब्द के प्रथम र को ण होता है। र>ण-कणवीरो (करवीरः)। नियम २७७ (हरिद्रादौ लः ११२५४) हरिद्रा आदि शब्दों में असंयुक्त र को ल होता है। र>ल-हलिद्दी (हरिद्रा) दलिद्दाइ (दरिद्राति) दलिद्दो (दरिद्रः) दालिदं (दारिद्र्यम्) हलिद्दो (हरिद्रः) जहुट्ठिलो (युधिष्ठिरः) सिढिलो (शिथिरः) मुहलो (मुखरः) चलणो (चरणः) वलुणो (वरुणः) कलुणो (करुणः) इङ्गालो (अङ्गारः) सक्कालो (सत्कारः) सोमालो (सुकुमारः) चिलाओ (किरात:) फलिहा (परिखा) फलिहो (परिघः) फालिहद्दो (पारिभद्रः) काहलो (कातरः) लुक्को (रुग्णः) अवद्दालो (अपद्वारः) भसलो (भ्रमरः) जढलो (जठरः) बढलो (बठरः) निठुलो (निष्ठुरः) । नियम २७८ (स्थले लो : १०२५५) स्थल शब्द के ल को र होता है। ल>र-थोरं (स्थूलम् । नियम २७६ (स्वप्न-नीव्यो १२५६) स्वप्न और नीवी शब्द के व को म विकल्प से होता है। a>म-सिमिणो, सिविणो (स्वप्नः) नीमी, नीवी (नीवी)। नियम २८० (दश-पाषाणो हः २२६२) दशन् और पाषाण शब्द के श और ष को ह विकल्प से होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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