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प्राकृत वाक्यरचना बोध
(बहुलाधिकारात् सोपसर्गस्यानादेरपि १२२४५ वृत्ति)
उपसर्ग सहित पद के अनादि य को कहीं प्रारंभिक और कहीं मध्यवर्ती माना जाता है । जैसे--संजमो (संयमो) अवजसो (अपयशः) ।
नियम १९६ (शषोः सः ११२६०) श और ष को स हो जाता है । श7 ष-सद्दो (शब्दः) सामा (श्यामा) सुद्धं (शुद्धम् ) सोहइ (शोभते) 47 स-सण्ढो (षण्ढः) सण्डो (षण्ड:) सज्जो (षड्जः)
नियम १९७ (कुब्न-कर्पर-कोले कः खोपुष्पे १२१८१) कुब्ज, कर्पर और कील के क को ख होता है । कुब्ज शब्द पुष्प के अर्थ में न हो तो। क7 ख--खुज्जो (कुब्जः) खप्परं (कर्परम्) खीलओ (कोलकः)
नियम १९८ (पाटि-परुष-परिघ-परिखा-पनस-पारिभद्रे फः ११२३२) पाटि (पट धातु मिन्नन्त) परुष, परिघ, परिखा, पनस, पारिभद्र शब्दों के प को फ हो जाता है। 47फ-फरुसो (परुषः) फलिहो (परिघः) फलिहा (परिखा) फणसो
(पनसः) फालिहद्दो (पारिभद्रः)।
नियम १९६ (मरकत-मवकले गः कन्दुके स्वावेः १११८२) मरकत मदकल और कन्दुक के पहले क को ग होता है। क7 ग----मरगयं (मरकतं) मयगलो (मदकलः) गेन्दुअं (कन्दुकम्)।
नियम २०० किराते च (१११८३) किरात शब्द के क को च होता
क7च-चिलाओ (किरातः)
नियम २०१ (जटिले जो झो वा १११९४) जटिल शब्द के ज को झ विकल्प से होता है। ज7झ-झडिलो, जडिलो (जटिलः)
नियम २०२ (तुच्छे तरच-छौ वा ११२०४) तुच्छ शब्द के त को च और छ विकल्प से होता है। ताच, छ-चुच्छं, छुच्छं (तुच्छम् )
नियम २०३ (तगर-सर-तूबरे वा १२२०५) तगर, तसर और तूवर के त को ट होता है। त73-टगरो (तगरः) टसरो (त्रसरः) टूवरो (तूवरः)
नियम २०४ (दशन-दष्ट-दग्ध-दोला-दण्ड-दर-बाह-दम्भ-वर्भ-कवन-दोहदे दो वा डः ११२१७) इन शब्दों के द को ड विकल्प से होता है। द73-डसणं, दसणं (दशनम् ) डट्ठो, दट्टो (दष्टः) डड्ढो, दड्ढो (दग्धः)
डोला, दोला (दोला) डण्डो, दण्डो (दण्ड:) डरो, दरो (दरः) डाहो, दाहो (दाहः) डम्भो, दम्भो (दम्भः) डब्भो, दम्भो (दर्भः) डोहलो, दोहलो (दोहदः)।
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