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________________ ११२ प्राकृत वाक्यरचना बांध ऋ7 उ-माउमण्डलं (मातृमण्डलम् ) माउहरं (मातृगृहम् ) पिहरं (पितृगृहम् ) माउसिआ (मातृष्वसा) पिउसिआ (पितृष्वसा) पिउवणं (पितृवनम्) पिउवई (पितृपतिः) नियम १६४ (मातुरिद् वा १११३५) मातृ शब्द (गौण हो) तो उसके ऋकार को इकार विकल्प से होता है। ऋ7 इ----माइहरं, माउहरं (मातृगृहम् ) नियम १६५ (उदूदोन्मृषि १११३६) मृषा शब्द के ऋ को उ, ऊ और ओ होता है। ऋ7उ, ऊ, ओ-मुसा, मूसा, मोसा (मृषा) मुसावाओ, मूसावाओ, मोसा वाओ (मृषावादः) नियम १६६ (इदुतौ वृष्ट-वृष्टि-पृथड-मृदङ्ग-नप्तृके ११३७) वृष्ट, वृष्टि, पृथक्, मृदङग और नप्तृक शब्दों के ऋकार को इकार और उकार होता है। ऋ7इ, उ-विट्ठो, बुट्ठो (वृष्ट:) । विट्ठी, वुट्ठी (वृष्टिः) पिहं, पुहं (पृथक्) मिइंगो, मुइंगो (मृदङ्गः) । नत्तिओ, नत्तुओ (नप्तृकः) । नियम १६७ (वा बृहस्पती १११३८) बृहस्पति शब्द के ऋ को इ और उ विकल्प से होता है। ऋ7इ, उ-बिहप्फई, बुहप्फई, बहप्फई (बृहस्पति:) नियम १६८ (इदेदोवृन्ते १११३६) वृन्त शब्द के ऋकार को इकार, एकार और ओकार होता है । ऋ7इ, ए, ओ-विण्टं, वेण्टं, वोण्ट (वृन्तम् ) नियम १६६ (रिः केवलस्य १३१४०) व्यंजन रहित केवल ऋ को रि होता है। ऋ7रि-रिद्धी (ऋद्धिः) । रिच्छो (ऋक्षः) नियम १७० (ऋणर्वृषभत्र्वृषौ वा १।१४१) ऋण, ऋजु, ऋषभ, ऋतु और ऋषि शब्दो के ऋ को रि विकल्प से होता है। ऋ7रि-रिणं, अणं (ऋणम्) रिज्जु, उज्जु (ऋजुः) रिसहो, उसहो (ऋषभः) रिऊ, उऊ (ऋतुः) रिसी, इसी (ऋषिः) । नियम १७१ (दृशः क्विप-टक्सकः १११४२) विप्, टक् और सक् प्रत्ययान्त दृश् धातु के ऋ को रि आदेश होता है। ऋ7रि---सरिवण्णो (सदृक्वर्णः) सरिरूवो (सदृक्पः ) सरिसो (सदृशः) एआरिसो (एतादृशः) जारिसो (यादृशः) सरिच्छो (सदृक्षः) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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