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________________ __स्वरादेश (8) शब्द संग्रह (प्रसाधन सामग्री) लिपष्टिक----ओट्ठरंजणं (सं) नेलपालिश–णहरंजणं (सं) स्नो--हैमं (सं) क्रीम-सरो (सं) इत्र-पुष्फसारो तेल-तेल्लं, तेल मेंहदी--मेंहदी अंजन---अंजणो चोटी, चूडा-छेडो (दे०) पुष्पमाला-आमेलिओ पान-तंबोलं कंघी---फणिहो (दे०), कंकसी (दे०) दर्पण--दप्पणो, आयसो सिंदूर-सिंदूरो केशों का जूडा--आमेलो पाउडर --चुण्णअं (सं) रूज-कवोलरंजणं ० ---- -- स्वेद, पसीना-सेअं चिकना-चिक्कण (वि) चिन्ह-चिंधं उत्सवमहो, महं धातु संग्रह अभिपत्थ-प्रार्थना करना परिच्चय--परित्याग करना रम-खेलना पमत्थ-मंथन करना दह, डह---दग्ध होना णम, नम-नमस्कार करना परिअट्ट----घूमना सह---सहना, सहन करना अभिजाण-पहचानना आइक्ख-~-कहना स्वरादेश ऋकार को उ, इ, ऊ, ओ, ए, रि, ढि आदेश--- नियम १६१ (निवृत्त-वन्दारके वा १११३२) निवृत्त, वृन्दारक शब्दों के ऋ को उ विकल्प से होता है। ऋ7 उ--निवृत्तं, निअत्तं (निवृत्तम् ) वुन्दरया, वन्दारया (वृन्दारकाः) नियम १६२ (वृषभे वा वा १११३३) वृषभ शब्द के वृ को उ विकल्प से होता है। वृ7 उ-उसहो, वसहो (वृषभः) नियम १६३ (गौणान्त्यस्य १११३४) गौण शब्द (समस्त पदों में पूर्व पद) के अंत में होने वाले ऋकार को उकार होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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