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________________ स्वरादेश (५) अलिअं (अलीकम् ) जिअ ( जीवति ) जिअउ ( जीवतु ) विलिअं (व्रीडितम् ) करिसो (करीषः ) सिरिसो ( शिरीष :) दुइअं (द्वितीयम् ) तइअं (तृतीयम्) उवणिअं ( उपनीतम्) आणिअं (आनीतम्) पलिविअं ( प्रदीपितम् ) ओसिअन्तं ( अवसीदत् ) पसिअ ( प्रसीद ) गहिअं (गृहीतम्) वम्मिओ (वल्मीकः ) तयाणि ( तदानीम् ) नियम १३१ ( उज्जीर्णे १।१०२ ) जीर्ण शब्द के ई को उ होता है । ई 7 उ-जुण्णं (जीर्णम् ) । कहीं पर नहीं होता - जिणं ( जीर्णम् ) । ६७ नियम १३२ [ कहनविहीने वा १।१०३] हीन और विहीन शब्दों के ई को उ विकल्प से होता है । ई 7 उ-- हूणो, हीणो ( हीनः ) विहूणो, विहीणी ( विहीनः ) नियम १३३ (तीर्थे हे १।१०४) तीर्थ शब्द के ईकार को उकार होता है, ईकार से परे ह हो तो । ई 7 उतू हं (तीर्थम् ) अन्यत्र तित्थं । नियम १३४ ( एल्पीयूषापीड बिभीतक कीदृशे दृशे १।१०५) पीयूष, आपीड, बिभीतक, कीदृश, ईदृश शब्दों के ईकार को एकार होता है । ई 7 ए - पेऊस (पीयूषम् ) आमेलो (आपीड: ) बहेडओ ( बिभीतक : ) केरिस (कीदृशः) एरिसो ( ईदृशः ) नियम १३५ ( नीड पीठे वा १११०६) नीड और पीठ शब्द के ईकार को एकार विकल्प से होता है । ई 7 ए - नेडं, नीडं ( नीडम् ) पेढं पीढं (पीठम् ) वाक्य प्रयोग Jain Education International आत्तीए कम्मस्स बंधणं सघणं होइ । समाहीअ को उवाओ ? आसत्तो पत्ते यकज्जम्मि आसत्तिजुत्तो भवइ । पइक्खणं अप्पमायो भविअव्वो । पमायो पात्रं करिसइ । सुहजोगेण सह पुण्णं हवइ । पुण्णस्स फलं लोगा अहिलसंति । मणुसा पावं करेंति परं तस्स फलं नेच्छति । पमायो सव्वतो महो अणो अत्थि | झाणेण अहियो कम्मक्खयो भवइ । सरीरसत्तीए अणुसारेण तवं काअव्वं । सज्झायो साहूणं आभूसणं अस्थि । मणं पवणवेगाओ अहियं गइमंतं अथ । अवज्झाणेण जम्ममरणं वड्ढइ । अहं समाहिमच्चुं अहिलसामि । धातु प्रयोग अयं रुक्खी गिम्हकाले फलइ । तुमए सह जं किमवि जाअं तं वीसर । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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