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________________ ६८ प्राकृत वाक्यरचना बोध कज्जकरणस्स पुवं जो चिंतइ सो अवसाणे न विसीअइ । सा पुहवि खणइ । आओ धम्मसहाए पइदिणं वक्खाणइ । जो धम्मं करेइ सो फलं पावेइ । आयंकबाई मोरउल्ला नरा संहरइ । अव्यय प्रयोग किं तुमं जाणसि ? अप्पा कुओ आगओ ? पमत्तस्स सव्वओ भय अत्थि । अहं कओ आगओ त्ति हं न जाणामि । प्राकृत में अनुवाद करो पाप धन से न धर्म होता है और न पुण्य होता है । किसी को दुःख देना । भोजन और वस्त्रों में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए । प्रेक्षाध्यान ध्यान की आज तक की अंतिम पद्धति है । समाधि पूर्वक जीवन जीना चाहिए । स्वाध्याय तप का ही एक भेद है । जैन धर्म में तप की परंपरा आज तक चलती है । मन घोड़ा है । यह पवन वेग से भी तेज दौडता है । अपध्यान से कर्म का बंधन होता है । धातु का प्रयोग करो विनय से विद्या फल देती है । जो अधिक चिंतन करता है वह कार्य कम करता है । अपने द्वारा किए गए उपकार को भूल जाओ। तुम्हारा स्नेह मुखींचता है। क्या शिव सृष्टि का संहार करता है ? वह कठोर श्रम से पर्वत को खोदता है । जो सेवा करता है वह फल पाता है । जो व्याख्यान देता है वह भूखा नहीं रहता । अव्यय का प्रयोग करो तुम आज कहां से आए हो ? जो परिग्रह रखता है उसे चारों ओर से भय है । प्रश्न १. अस धातु के सारे रूप लिखो । २. ईकार को क्या-क्या आदेश होता है ? एक-एक उदाहरण लिखो । ३. पेढ, केरिसो, हूणो, आणिअं विलिअं, गहिरं -- ये शब्द किस नियम से बने हैं, सिद्ध करो । ४. आसक्ति, प्रमाद, स्वाध्याय, ध्यान, पाप, मन, समाधि, अपध्यान और पुण्य - इन शब्दों के लिए प्राकृत के शब्द बताओ । ५. खोदना, संहार करना, खींचना, फलना, प्राप्त करना, चिंता करना, विस्मरण करना और व्याख्यान देना - इन अर्थों के लिए इस पाठ में कौन-कौन सी धातुएं हैं ? ६. सव्वत्तो, इअ और कओ ---इन अव्ययों का वाक्य में प्रयोग करो । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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