________________
२८
स्वरादेश (५) ईकार को अ आ, इ, उ, ऊ, ए,
शब्द संग्रह (जैनपारिभाषिकर) पुण्य-पुण्णं
पाप-पावो, अणो प्रमाद-पमायो, पमत्तो आसक्ति --आसत्ती ध्यान--झाणं
समाधि-समाही (पुं) तप--तवो, तवं ।
स्वाध्याय-सज्झायो अपध्यान-अवज्झाणं
मन-मणं, मणो
धातु संग्रह करिस-खींचना
फल-फलना चिंत-चिन्ता करना वीसर-विस्मरण करना, भूलना संहर--संहार करना
खण-खोदना पाव---प्राप्त करना
वक्खाण-व्याख्यान करना
अव्यय संग्रह इइ, इअ, त्ति (इति) समाप्ति सूचक कत्तो, कुत्तो, कुओ, कओ (कुतः) क्यों, कहां से, किस और से सव्वत्तो, सव्वतो, सव्वओ (सर्वत:) सब प्रकार से, चारों ओर से
गो और नौ शब्द के रूप याद करो देखो-परिशिष्ट १ संख्या २८, २९ ई को अ, आ, इ, उ, ऊ, ए आदेश
नियम १२८ [हरीतक्यामोतोत् ११६६] हरीतकी शब्द के आदि ई को अ होता है। ई? अ-हरडई (हरीतकी)
नियम १२६ [आत्कश्मीरे ११००] कश्मीर शब्द में ई को आ होता है। ई 7 आ-~-कम्हारो (कश्मीरः)
नियम १३० [पानीयादिष्वित् ११०१] पानीय आदि शब्दों के ईकार को इ होता है। ई75---पाणिों (पानीयम्) गहिरं (गभीरम्)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org