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प्राकृत वाक्यरचना बोध
इ 7 ओ, उ-दोहा कि ज्जइ, दुहा किज्जइ (द्विधा क्रियते) । दोहा करं, दुहा
कअं (द्विधा कृतम्) । नियम १२७ [वा निझरे ना १९८] निर्झर शब्द में नि को ओ विकल्प से हो जाता है। नि7 ओ-ओज्झरो, निज्झरो, (निझरः) प्रयोग वाक्य
अमुम्मि समये सव्वण्ण को अत्थि ? वीयराओ पावं ण करेइ । सावगो समणं उवासइ । साविया समाहिमच्चु अहिलसइ । दोसस्स चयो कढिणो परं रागस्स य अइकढिणो विज्जइ । रागो सुवण्णस्स संखला अस्थि । कम्मस्स बंधणं अफलं न भवइ । समणस्स महावीरस्स सासणे समणीण मुक्खा चंदणबाला आसि । आणंदो पढमो सावगो दस मुक्खसावगेसु अहेसि । अणासत्त भावेण कम्मस्स बंधणं सिढिलं भवइ। आयरियं अन्तरेण संपइ गणस्स आणाणिद्देसअरो को वि नस्थि । वीयरागो अम्हाणं आयंसो विज्जइ । अस्स वरिसस्स तुज्झ चाउमासो कत्थ अत्थि ? वट्टमाणकाले अम्हाण गामे अणसणं चलइ। धातु प्रयोग
___ तवस्सी तवेण अप्पाणं सोहइ । अज्ज मए पुण्णदिवहो उवासिओ, किं भवंतो मन्नइ जं अप्पा परभवं न गच्छइ । गोकुलो भायराणं हिययं जूंजइ । सो मूढो मुहा मच्छिअं हणइ । मज्झ पिआ पंचवरिसपेरंतो तत्य पवसिहिइ । चम्मआरो कमणियं (जूता) ओप्पइ । मोहणो पइदिणं साहुणो उवचिट्ठइ । कसणो पोत्थाई विक्केइ । किसाणो खेत्ते इक्खं पीलइ। अव्यय प्रयोग
जो मुसावायं जंपइ तस्स वीसासो न हवइ । तस्स गिहे तेण सद्धि मा गच्छ । सो आयरियं वंदइ तओ सामाइयं करेइ । सो तत्थ मुहा गच्छइ । . प्राकृत में अनुवाद करो
सर्वज्ञ शब्द का अर्थ है सबको जानने वाला । वीतराग किसी के प्रति राग नहीं करते। इस गांव में साधुओं का चतुर्मास है । साध्वियां धर्म के प्रचार के लिए दूर तक जाती हैं । तेरापंथ में एक आचार्य होते हैं। श्रावक प्रतिदिन सामायिक करता है। श्राविका चतुर्मास में तपस्या अधिक करती है। कर्म का फल मिलता है, कोई भी कर्म निष्फल नहीं जाता । द्वेष करना किसी की दृष्टि में अच्छा नहीं है । राग के कारण संसार में ममत्व बढता है। मृत्यु को देखकर मनुष्य में धर्म भावना बढती है। जैन लोग संथारा-युक्त मृत्यु चाहते हैं।
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