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________________ स्वरादेश (३) आ7उ-सुण्हा (सास्ना) थुवओ (स्तावक:) नियम १०७ (कव्वासारे ११७६) आसार शब्द के आदि आ को ऊ विकल्प से होता है । ऊसारो, आसारो (आसारः) नियम १०८ [आर्यायां यः श्वश्वाम् ११७७] आर्या शब्द श्वश्रु के अर्थ में हो तो यर्या के आ को ऊ होता है। आ73----अज्जू (आर्या) सास नियम १०६ [एद् प्राह्य १७८] ग्राह्य शब्द के आ को ए होता है । आ7ए-गेज्झं (ग्राह्यम्) नियम ११० [द्वारे वा ११७६] द्वार शब्द के आ को ए विकल्प से होता है। आ7ए-देरं । पक्षे दुआरं, दारं, वारं । .नियम १११ [पारापते रो वा १८०] पारापत शब्द के रा के आ को एकार विकल्प से होता है। मा7ए--पारेवओ, पारावओ (पारापतः) (मात्रटि वा १२८१) मात्रट प्रत्यय के आ को ए विकल्प से होता आ7ए-एत्तिअमेत्तं, एत्तिअमत्तं (इयन्मात्रम् ) नियम ११२ [उवोदवाने १२८२] आर्द्र शब्द के आ को उ और ओ विकल्प से होता है। आ7 उ, ओ-उल्लं, ओल्लं, अल्लं, अ (आर्द्रम्)। नियम ११३ [ओवाल्यां पङ कती ११८३] आली शब्द पंक्ति अर्थ में हो तो उसके आ को ओ होता है।। आ7 ओ- ओलो (आली) पंक्ति । प्रयोग वाक्य मट्रिआए घडो सव्वदेसम्मि मिलइ । तुज्झ गिहे कयलाई संति न वा ? सा करगेण नीरं पिबइ, भिंगम्मि वारि सीयलं ठाअइ । सुवण्णआरो (स्वर्णकार) वि करंडीए सलिलं पासे रक्खाइ। जणा विवाहे कोडिआण पओगं करेंति । सीयकाले पुरिसा कलसस्स वारि पिबं ति । साहूण पासे कुउआ संति । कसे दुद्ध अत्थि । किं गग्गरीए ठिअं दहि खट्टे (खट्टा) न भवइ । जयंती कुल्लडेण घडस्स नीरं निक्कसइ (निकालती है)। सो कायकसं नीरेण बले (एव) सोहइ (शुद्धि करता है) । अहं चिरिक्काए पाणि न इच्छामि । . धातु प्रयोग उत्तिण्णं सुणिऊण ललिया उक्कुदइ। अविणीयो सीसो गुरुकज्जकरणकाले अवसीअइ। अहं भोयणे संजमामि। तुमं किं निसाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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