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________________ ८८ प्राकृत वाक्यरचना बोध संठविओ, संठाविओ (संस्थापितः) नराओ, नाराओ (नाराच:) पययं, पाययं (प्राकृतम्) बलया, बलाया (बलाका) तलवेण्ट, तालवेण्ट, कुमरो, कुमारो (कुमार:) तलवोण्टं तालवोण्टं ( i i ) खइरं, खाइरं (खादिरम्) हलिओ, हालिओ (हालिकः) नियम ६६ (घन वृद्धर्वा १६८) घन् प्रत्यय से वृद्धि होकर आकार बना है उसके पहले आ को अ विकल्प से होता है। आ74-पवहो, पवाहो (प्रवाहः)। पयरो, पयारो (प्रकारः, प्रचारः) पहरो, पहारो (प्रहारः) पत्थवो, पत्थावो (प्रस्ताव:) नियम १०० (मांसादिष्वनुस्वारे ११७०) मांस आदि शब्दों के आदि आ को अ हो जाता है। आ7अ-मंसं (मांसम्) कंसिओ (कांसिक:) पंसू (पांसुः) वंसिओ (वांशिकः) पंसणो (पांसनः) पंडवो (पाण्डव:) कंसं (कांस्यम्) संसिद्धिओ (सांसिद्धिकः) संजत्तिओ (सांयन्त्रिकः) नियम १०१ (महाराष्ट्र ११६६) महाराष्ट्र शब्द में आदि आ को अ होता है। आ7 अ-मरहट्ठ, मरहट्ठो। नियम १०२ (श्यामाके मः ११७१) श्यामाक शब्द में मा के आ को अ होता है। आ7 अ—सामओ। नियम १०३ (इ. सदादी वा ११७२) सदा आदि शब्दों के आ को इकार विकल्प से होता है। आ7इ-सइ, सया (सदा) निसिअरो, निसाअरो (निशाचरः) कुप्पिसो, कुप्पासो (कूर्पासः) नियम १०४ (आचार्येचोच्च ११७३) आचार्य शब्द में चा के आ को इ और अ होता है। आ75, अ-आइरिओ, आयरिओ (आचार्यः) नियम १०५ (ई: सत्यान-खल्वाटे ११७४) स्त्यान और खल्वाट शब्दों के आ को इ हो जाता है। आ7इ-ठीणं, थीणं, थिण्णं (स्त्यानम् ) खल्लीडो (खल्वाट:)। नियम १०६ (उः सास्ना-स्तावके १७५) सास्ना और स्तावक शब्दों के आदि आ को उ हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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