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________________ ८४ प्राकृत वाक्यरचना बोध अकार को उ, ए, ओ, आ, आइ, लुक् आदेश नियम ८६ (प्रथमे पथो ; १५५) प्रथम शब्द में प और थ के अकार को एक साथ और क्रम से उकार विकल्प से होता है। अ7 उ-पुढुमं, पुढमं, पढुमं, पढमं (प्रथमम्) नियम ८७ (जो गत्वेभिज्ञादौ ११५६) अभिज्ञ आदि शब्दों के ज्ञ को ण करने पर ज्ञ के अ को उ होता है। अ73-अहिण्णू (अभिज्ञः) कयण्णू (कृतज्ञः) सव्वण्णू (सर्वज्ञः) आगमण्णू (आगमज्ञः) जहां ज्ञ का ण्ण रूप देखें उन्हें अभिज्ञ आदि शब्द समझें । नियम ८८ [एच्छय्यादौ १।५७] शय्या आदि शब्दों के आदि अ को ए होता है। अ7ए--सेज्जा (शय्या) सुन्देरं (सौन्दर्यम् ) गेन्दुओं (कन्दुकम्) एत्थ (अत्र) नियम ८६ [ब्रह्मचर्ये चः १२५६] ब्रह्मचर्य शब्द में च के अ को ए होता है। अ7ए-बम्हचेरं (ब्रह्मचर्यम्) । नियम ६० [तोन्तरि १६०] अन्तर शब्द के त के अ को ए होता है। अ7ए–अन्ते उरं (अन्तःपुरम्) अन्तेआरी (अन्तश्चारी) नियम ६१ [वल्ल्युत्कर---पर्यन्ताश्चर्य वा ११५८] वल्ली, उत्कर, पर्यन्त और आश्चर्य शब्दों के आदि अ को ए विकल्प से होता है। अ7ए--वेल्ली, वल्ली (वल्ली) पेरंतो, पज्जन्तो (पर्यन्तः) उक्के रो, उक्करो (उत्करः) अच्छेरं, अच्छरिअं, अच्छअरं अच्छरिज्जं, अच्छरीअं (आश्चर्यम् ) नियम ६२(ओत्पद्म १६१) पद्मशब्द के आदि अ को ओ होता है। अ7 ओ---पोम्म (पद्मम्) । नियम ९३ (नमस्कार-परस्परे द्वितीयस्य २६२) नमस्कार और ___ परस्पर शब्दों के दूसरे अ को ओ होता है। अ7 ओ.---नमोक्कारो (नमस्कारः) परोप्परं (परस्परम् ) नियम ९४ (वापौ १२६३) अर्पयति धातु के इस रूप के आदि अ को ओ विकल्प से होता है। अ7ओ--ओप्पेइ, अप्पेइ (अर्पयति) नियम ९५ (स्वपावुच्च ११६४) स्वपिति धातु के इस रूप के आदि अ को ओ और उ आदेश होता है। 47 ओ, उ-सोवइ, सुवइ (स्वपिति)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002024
Book TitlePrakrit Vakyarachna Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages622
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Literature
File Size20 MB
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