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स्याद्वाद-मीमांसा
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कुत इति चेत्, सप्तधासंशयोत्पत्तेः । सप्तधव संशयः कथमितिचेत्, तद्विषय
वस्तुधर्मसप्तविधत्वात् ।' विद्यानन्द, अष्टस. पृ. १२५-१२६ । १७. समन्तभद्र, आप्तमी. १४, १५ । १८. युक्त्यनुशा. ४५, समन्तभद्र । स्वयम्भू. २. १६, समन्तभद्र ।
Discussion
सुरेंद्र बारलिंगे:
स्यात्वाद में 'स्यात्' शब्द अनेकांत का निदर्शक है इसका क्या प्रमाण है ? दरबारीलाल कोठिया:
आप्तमीमांसा में कहा गया है : "वाक्येषु अनेकांत द्योतिगम्यं प्रतिविशेषणम् स्यात् उपयोगित्वात् तत् एवही नाम अपि ।" स्यात् जो है वह निपात है और अनेकांत का द्योतक है। रामचन्द्रशास्त्री जोशी :
तथापि 'निपात' का अर्थ द्योतक नहीं होता। दरबारीलाल कोठिया:
स्यात् का टीकाकारों ने केवल निपात ही नहीं दूसरा भी अर्थ दिया है। कैलाशचन्द्रशास्त्री शर्मा :
"निपातात् द्योतकाः भवन्तिः" इति वचनात् । सुरेंद्र बारलिंगे:
मेरा सवाल यह था कि 'स्यात्' का अनेकांत यह अर्थ कैसे होता है ? दससुखभाई मालवणिया :
आगम प्रज्ञापना में जहाँ भंग बताये हैं, जहाँ वह अपेक्षा बतायी है, वहाँ स्यात् शब्दका प्रयोग नहीं किया गया है। और जहाँ अपेक्षा नहीं बतायी वहां स्यात् शब्द का प्रयोग किया है। केलाशचन्द्रशास्त्री शर्मा :
'स्यात् शब्दस्य अपेक्षावचनात्' सुरेंद्र बारलिंगे :
स्यात् शब्द अपेक्षा द्योतक है यह निःसंदेह है। लेकिन मेरा मतव्य यह है कि 'स्यात्' शब्दका अर्थ अनेकांत नहीं हो सकता।